SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि अस्य प्रयोगात्कुक्षिस्थः स्फुटवाग्व्याहरत्यपि ॥ करता है । इसके सेवनसे वन्ध्या स्त्रीको भी शूर योनिदुष्टाश्च या नार्यः शुक्रदुष्टाश्च ये नराः। और विद्वान पुत्र प्राप्त हो जाता है । वन्ध्या च लभते पुत्रं शूरं पण्डितमानिनम् ।। इसे पीनेसे जड़ता, गद्गद् शब्द और मूकता जडगद्गदमूकं च पानादेव प्रशाम्यति । (गूंगेपन) का नाश होता है। सप्तरात्रप्रयोगेण सुस्वरं कुरुते नरम् ॥ इसे सात दिन सेवन करनेसे मनुष्यका स्वर मासत्रयोपयोगेन कुर्याच्छुतिधरं नरम् ।। मधुर हो जाता है और ३ मास तक सेवन करनेसे नाग्निर्दहति तद्वेश्म न वज्रमुपहन्ति च॥ न तत्र म्रियते बालो यत्रास्ते सोमसज्ञितम् ।। वह श्रुतिधर हो जाता है। जिस घरमें यह घृत होगा वह विनोंसे सुरक्वाथ-सफेद सरसों, बच, ब्राह्मी, शंख- | क्षित रहेगा और उसमें बालमृत्यु न होगी। पुष्पी (शंखाहोली), काकोली, क्षीरकाकोली, मुलैठी (मात्रा-६ माशेसे १ तोले तक ।) कूठ, कुटकी, कृष्ण सारिवा, हरं, बहेड़ा, आमला, चोरक, चमेली के फूल, श्वेतसारिवा, बासे (असे) (७९६५) सोमराजीवृतम् के फूल, मजीठ, देवदारु, सेठ, पीपल, पीपलामूल, / (भै. र. ; व. से. ; भा. प्र. म. खं. २ । कुष्ठा.) भंगरा, हल्दी, फूलप्रियंगु, हुलहुल, दशमूलकी, प्रत्येक ओषधि, अपमार्ग ( चिरचिटा ), असगन्ध खदिरस्य पलान्यष्टौ सोमराज्याः पलद्वयम् । और शतावर, १०-१० तोले लेकर सबको एकत्र जलाढकद्वये साध्यं यावत्पादावशेषितम् ॥ कूटकर ३२ सेर पानीमें पकावें और ८ सेर रहने क्वाथ्यमानश्च मृद्वग्नौ घृतप्रस्थं विपाचयेत । पर छान लें। चतुष्पलं सोमराज्याः खदिरस्य पलं भिषक् ।। पटोलमूलं त्रिफला त्रायमाणा दुरालभा ।। ___ चार सेर घी में यह क्वाथ ( तथा ८ सेर पानी) कल्कार्थ कटुकश्चापि कार्पिकान सूक्ष्मपेषितान् ।। गिलाकर पकावें । जब पानी जल जाए तो पलद्वयं कौशिकस्य शुद्धस्यात्र प्रदापयेत् । धीको छान लें और गायत्री मन्त्रसे अभिमन्त्रित सिद्धं सर्पिरिदं श्वित्रं हन्यादम्भ इवानलम् ॥ करके रखें। अष्टादशानां कुष्ठानां परमश्चैतदौषधम् । इसे २ मासका गर्भ होनेके पश्चात् से आठवें सोमराजीघृतं नाम निर्मितं ब्रह्मणा पुरा॥ मास तक गर्भिणीको खिलाना चाहिये। लोकानामुपकाराय श्वित्रकुष्ठादिरोगिणाम् ।। ___ इसे सेवन करानेसे बुद्धिमान और नीरोग तथा | क्वाथ-खैरसार ४० तोले और बाबची स्पष्ट उच्चारण करने वाला पुत्र उत्पन्न होता है। १० तोले ले कर दोनोंको कूट कर १६ सेर यह घृत योनिदोषों और शुक्रविकारोंको नष्ट । पानीमें पकायें और ४ सेर रहने पर छान लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy