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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि (७९०९) सोरगुटिका कस्तूरी १ भाग, केसर १ भाग; जायफल (र. का. धे. । उदरा.) और लौंगको चूर्ण २-२ भाग, अफीम ४ भाग और भांग २ भाग ले कर सबको एकत्र खरल लवङ्गमरिचैल्वालुटणं समसोरकम । करके (पानीके साथ घोट कर ) चनेके समान कन्यारसै सप्तपिष्टं गोमूत्रण यकृद्गदे ।। गोलियां बना लें। लौंग, काली मिर्च, एलबालुक और सुहागेकी इनमेंसे १ गोली शहदके साथ मिलाकर खील १-१ भाग तथा सोरा सबके बराबर ले | रात्रिके प्रथम पहरमें खा कर ऊपर मिश्री और घी कर सबका चूर्ण बना कर घृतकुमारीके रसमें युक्त दूध पीना चाहिये। सात दिन खरल करके (१-१ माशेकी ) गोलियां इसके सेवनसे वीर्यस्तम्भन होता है । बना लें। (७९११) स्तम्भनवटिका (२) इन्हें गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे यकृद रोग नष्ट होता है। (वै. र. । वाजीकरणा. ; धन्व. । वाजीकरणा.) सौगतवटी समुद्रशोपवीजानि भागैकं धूर्तबीजकम् । (सौरतगुटिका) भागत्रयं जातिपत्री भागमेकं च तत्फलम् ॥ यवानी म्लेच्छदेशस्था भागत्रयसमन्विता । ( वृ. यो. त. ; यो. त.) भागार्धमहिफेनं च महिषीक्षीरशोधितम् ॥ रसप्रकरणमें देखिये। विजयाखसफलक्वाथैर्दशवारं विभावयेत् । सौभाग्यशुण्ठिपाकः धत्तूरबीजतैलेन मर्दयेत्तदनन्तरम् ॥ (सौभाग्यशुण्ठीमोदकः ) बदरास्थिप्रमाणेन वटिकाः सम्प्रकल्पयेत् । रस तथा अवलेह प्रकरणमें देखिये. | मदनान्दजननी वीर्यस्तम्भकरी परम् ॥ (७९१०) स्तम्भनवटिका (१) उन्मत्तानां नत्ते कीनामतिगर्वहरा कलौ ॥ ( न. मृ. । त. ५ ; वै. र. । वाजीकरणा. ; समुद्रशोषके बीज और धतूरेके बीज १-१ धन्व. । वाजीकरणा.) भाग, जावत्री ३ भाग, जायफल १ भाग, खुराभागैकं मृगनाभिं तथा काश्मीरसम्भवम् ।। सानी अजवायन ३ भाग और भैंसके दूधमें शुद्ध जातीफलं लवङ्गं च प्रत्येकं भागयुग्मकम् ।। की हुई अफीम आधा भाग ले कर सबको एकत्र चतुर्भागाहिफेनं च विजया भागयुग्मकम् । खरल करके भांग और पोस्तके डोढेके काथकी चणकाभा वटी कार्या वीर्यस्तम्भकरी मता ॥ १०-१० भावना दें और फिर धतूरेके बीजोंके भक्षयेन्मधुना सा कामी नित्यं निशामुखे। तेलमें घोट कर बेरकी गुठलीके समान गोलियां ससितं सर्पिषा युक्तं दुग्धं चैव पिबेदनु ॥ । बना लें । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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