________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुटिकाप्रकरणम् ]
पश्चमो भागा
२२६ .
-
ग्रहणीं वातकफजां वासं कासं क्षयामयम् । । (७९०७) सैन्धवादिगुटिका प्लीहानं श्लीपदं शोफ हिको मेहं भगन्दरम् ॥ (वृ. मा. । अजीर्णा.; ग. नि.। अजीर्णा, ५) निहन्युः पलितं वृष्यास्तथा मेध्या रसायनाः ॥
सूखा हुवा सुरण (जिमिकन्द) और विधारा- सिन्धूत्यहिङ्गुत्रिफलायवानीमूल १६-१६ भाग, मूसली और चीतामूल ८-८
व्योषैर्गुडाशैर्गुटिकां प्रकुर्यात् । भाग, हरं, बहेड़ा, आमला; बायबिडंग, सांठ, तो भक्षयेत्तृप्तिमवाप्नुवन्ना पीपल, शुद्ध भिलावा, पीपलामूल और तालीस- . भुजीत मन्दाग्निरपि प्रभूतम् ॥ पत्र ४-४ भाग एवं दालचीनी, इलायची और __सेंधा नमक, हींग, हर, बहेड़ा, आमला, काली मिर्च २-२ भाग ले कर चूर्ण बनावें और अजवायन, सेठ, काली मिर्च और पीपल समान उसे सबसे दो गुने गुड़में मिला कर ( १-१ तो- भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसे सबके बराबर लेके ) मोदक बना लें।
गुड़में मिला कर (६-६ माशेको) गुटिका यह मोदक अत्यन्त अनिवर्द्धक और उत्तम | ना लें। अर्शनाशक है । इसके सेवनसे वातकफज ग्रहणी, | इनके सेवनसे पाचनशक्ति अत्यन्त प्रबल श्वास, कास, क्षय, प्लीहा, श्लीपद, शोथ, हिका, | हो जाती है। प्रमेह, भगन्दर और पलितका नाश होता है । यह
(७९०८) सैन्धवादिगुटो वृष्य, मेधावईक और रसायन है। सूरणवटिका (लघु)
(वै. म. र. । पट. ८) (ग. नि. । गुटिका. ८)
सैन्धवामलकरजोनवनीतगुटीर्जयेत् । प्र. सं. ५१६३ " मरिचादिमोदक: " पित्तगुल्मविकाराणां दोषाणां संहति भृशम् ।। देखिये।
सेंधा नमक और आमला समान भाग ले कर सूर्यचन्द्रप्रभा गुटिका
चूर्ण बनावें और नवनीत (मक्खन) में घोट कर ( ग. नि. । गुटिका. ४)
गोली बना लें। रसप्रकरणमें देखिये।
इसके सेवनसे पित्तज गुल्म नष्ट होता है । सूर्यप्रभा गुटिका
(मात्रा-४ माशे।) रसप्रकरणमें देखिये।
सैन्धवादिवटी सूर्यसन्निभा गुटी
( र. र. । अध्न.) (र. का. थे. । उदरा,) रसप्रकरणमें देखिये।
रसप्रकरणमें देखिये.
२९
For Private And Personal Use Only