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गुटिकापकरणम् ] पञ्चमो भागः
२२७ इन्हें सेवन करनेसे वीर्यस्तम्भन होता है। सपियालरसक्षौद्रा प्रस्था) नवसर्पिषः । इन्हें सेवन करने वाला पुरुष यौवनमद-मत्त तरु- सितोपला तुलापादं कुर्यात्तन्मोदकांस्ततः ॥ णियों और नर्तकियोंका गर्व चूर्ण कर देता है। मोदकं भक्षयित्वैकं षष्टिं व्रजति योषिताम् । (रात्रिके प्रथम पहरमें १ गोली मिश्रीयुक्त
___कौंचकी २० तोले जड़को ८ सेर पानीमें दूधके साथ खानी चाहिये ।)
पकावें और २ सेर पानी रहने पर छान लें । तद(७९१२) स्तम्भनवटिका (३)
नन्तर उसमें २०-२० तोले कौंचकी जड़का
चूर्ण, गेहूंका आटा, उड़दका आटा, तालमखानेका (धन्व. । वाजीकरणा.)
चूर्ण, पीपलका चूर्ण, पियाल [ चिरौंजीके फल ] जातीफलं लवङ्गं च जातीपत्रं सकुङ्कमम् ।।
का रस, शहद एवं १ सेर घी तथा १२५ तोले सूक्ष्मैला चाहिफेनं च त्वाकारकरभं तथा ।।
खांड मिलाकर पुनः पकावें और गाढ़ा हो जानेपर प्रत्येकं कर्षमात्राणि कपूर शाणमात्रकम् ।।
(तोला तोला भरके) मोदक बना लें। नागवल्लीदलरसैबटी चणकसन्निभा ॥
इनके सेवनसे साठ स्त्रियोंसे रमण करनेकी वीर्यस्तम्भनी ह्येषा बलवर्णाग्निदीपनी ॥
शक्ति प्राप्त होती है। ____ जायफल, लौंग, जावत्री, केसर, छोटी इला
स्वर्णादिगुटिका यची, अफीम और अकरकरा ११-१। तोला तथा
रसप्रकरणमें देखिये। कपूर ५ माशे ले कर सबको पानके रसमें घोटकर
(७९१४) स्वर्जिकावटी चनेके समान गोलियां बनावें । ये गोलियां वीर्यस्तम्भनी तथा बल, वर्ण और
(वृ. नि. र. । गुल्मा.)
स्वर्जिका शाणमाना स्यात्तावदेव गुडो भवेत् । अग्निको बढ़ानेवाली हैं।
उभयोर्वटिकां खादेद्गुल्मामयविनाशिनीम् ॥ (मात्रा-१ गोली। अनुपान-मिश्री
५ माशे सज्जीको ५ माशे गुड़में मिलाकर युक्त दूध । )
गोली बनावें। स्पर्शवातान्तकृद्धटी
इसे खानेसे गुल्म नष्ट होता है। रसप्रकरणमें देखिये।
(मात्रा-२ माशा ।) (७९१३) स्वयंगुप्तादिमोदकः (७९१५) स्वल्पखदिरवटिका (ग. नि. । वाजीकरणा.)
( भै. र. । मुखरोगा. ; वृ. मा. ; व. से. ; जलाढके स्वयंगुप्तामूलं पश्चपलं पचेत् ॥ च. द. ; र. र. । मुखरोगा.) पादशेषे तु सर्प्य कुडवांशान् पृथक् क्षिपेत् । खदिरस्य तुलां सम्यक् जलद्रोणे विपाचयेत् । स्वगुप्तामूलगोधूममाषेचरकपिप्पलीः॥ शेषेऽष्टभागे तत्रैव प्रतिवापं प्रदापयेत् ।।
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