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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुटिकापकरणम् ] पञ्चमो भागः २२७ इन्हें सेवन करनेसे वीर्यस्तम्भन होता है। सपियालरसक्षौद्रा प्रस्था) नवसर्पिषः । इन्हें सेवन करने वाला पुरुष यौवनमद-मत्त तरु- सितोपला तुलापादं कुर्यात्तन्मोदकांस्ततः ॥ णियों और नर्तकियोंका गर्व चूर्ण कर देता है। मोदकं भक्षयित्वैकं षष्टिं व्रजति योषिताम् । (रात्रिके प्रथम पहरमें १ गोली मिश्रीयुक्त ___कौंचकी २० तोले जड़को ८ सेर पानीमें दूधके साथ खानी चाहिये ।) पकावें और २ सेर पानी रहने पर छान लें । तद(७९१२) स्तम्भनवटिका (३) नन्तर उसमें २०-२० तोले कौंचकी जड़का चूर्ण, गेहूंका आटा, उड़दका आटा, तालमखानेका (धन्व. । वाजीकरणा.) चूर्ण, पीपलका चूर्ण, पियाल [ चिरौंजीके फल ] जातीफलं लवङ्गं च जातीपत्रं सकुङ्कमम् ।। का रस, शहद एवं १ सेर घी तथा १२५ तोले सूक्ष्मैला चाहिफेनं च त्वाकारकरभं तथा ।। खांड मिलाकर पुनः पकावें और गाढ़ा हो जानेपर प्रत्येकं कर्षमात्राणि कपूर शाणमात्रकम् ।। (तोला तोला भरके) मोदक बना लें। नागवल्लीदलरसैबटी चणकसन्निभा ॥ इनके सेवनसे साठ स्त्रियोंसे रमण करनेकी वीर्यस्तम्भनी ह्येषा बलवर्णाग्निदीपनी ॥ शक्ति प्राप्त होती है। ____ जायफल, लौंग, जावत्री, केसर, छोटी इला स्वर्णादिगुटिका यची, अफीम और अकरकरा ११-१। तोला तथा रसप्रकरणमें देखिये। कपूर ५ माशे ले कर सबको पानके रसमें घोटकर (७९१४) स्वर्जिकावटी चनेके समान गोलियां बनावें । ये गोलियां वीर्यस्तम्भनी तथा बल, वर्ण और (वृ. नि. र. । गुल्मा.) स्वर्जिका शाणमाना स्यात्तावदेव गुडो भवेत् । अग्निको बढ़ानेवाली हैं। उभयोर्वटिकां खादेद्गुल्मामयविनाशिनीम् ॥ (मात्रा-१ गोली। अनुपान-मिश्री ५ माशे सज्जीको ५ माशे गुड़में मिलाकर युक्त दूध । ) गोली बनावें। स्पर्शवातान्तकृद्धटी इसे खानेसे गुल्म नष्ट होता है। रसप्रकरणमें देखिये। (मात्रा-२ माशा ।) (७९१३) स्वयंगुप्तादिमोदकः (७९१५) स्वल्पखदिरवटिका (ग. नि. । वाजीकरणा.) ( भै. र. । मुखरोगा. ; वृ. मा. ; व. से. ; जलाढके स्वयंगुप्तामूलं पश्चपलं पचेत् ॥ च. द. ; र. र. । मुखरोगा.) पादशेषे तु सर्प्य कुडवांशान् पृथक् क्षिपेत् । खदिरस्य तुलां सम्यक् जलद्रोणे विपाचयेत् । स्वगुप्तामूलगोधूममाषेचरकपिप्पलीः॥ शेषेऽष्टभागे तत्रैव प्रतिवापं प्रदापयेत् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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