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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[ सकारादि
संचल ( काला नमक ), बायबिडंग, सेंधा । नोट--ग. नि. वात रोगा. १९ में इसी नमक, सोंठ, काली मिर्च और पीपल समान भाग । चर्णको अपतन्त्रक नाशक लिखा है। ले कर चूर्ण बनावें ।
(७८८३) सौवर्चलाधं चूर्णम् (१) इसे शहद में मिलाकर चाटनेसे वातज छर्दि | (ग. नि. । परि. चूर्णा. ३ ) नष्ट होती है।
सौवर्चलं कणा शुण्ठी रामठं जोरकद्वयम् । (मात्रा-१ माशा। थोड़ी थोड़ी देर बाद | अजमोदा च मरिचमम्लवेतसमेव ।। चाटना चाहिये।)
समभागमिदं चूर्ण मन्दाग्निविनिवारणम् ॥ (७८८१) सौवर्चलादिचूर्णम् (२) । संचल (काला नमक), पीपल, सेठ, हींग, (हा. सं. । स्था. ३ अ. ३ ; ग. नि. ।
| सफेद और काला जीरा, अजमोद, काली मिर्च और
' अम्लवेत समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । भतिसारा. २)
। यह चूर्ण अग्निमांधको नष्ट करता है। सौवर्चलं प्रतिविषा हिङ्गु पथ्या कलिकः ।।
- (मात्रा--१॥ माशा ।) शुण्ठी चामातिसारनं शूलनं ग्राहिपाचनम् ॥ ।
1. (७८८४) सौवर्चलायं चूर्णम् (२) संचल (काला नमक), अतीस, हींग, हरे, (वृ. नि. र. । शूला.) इन्द्रजौ और सेठ समान भाग ले कर चर्णे | सौवचनाम्लदेतस विडलवणयुतससैन्धवाबनावें।
तिविषा । ___ यह चूर्ण आमातिसार नाशक, शूलन, माही विकटक वीजपुररसान्वितमशितं गुरुगुल्मशूऔर पाचक है। .
लहरम् ।। (७८८२) सौवर्चलादिचूर्णम् (३) संचल (काला नमक), अम्लबेत, बिडलवण,
(ग. नि. । हृदोगा. २६) | सेंधा नमक, अतीस, सांठ, मिर्च और पीपल समान सौवचलं शृङ्गवेरं दाडिमं साम्लवेतसम् ।।
भाग ले कर चूर्ण बनावें । श्वासहद्रोगशमनमिदं स्यादिङ्गपश्चमम् ॥ ।
इसे बिओ रेके रसमें मिलाकर सेवन करनेसे संचल (काला नमक), सेठ, अनारदाना, गुल्म और शूलका नाश होता है । अम्लबेत और हींग समान भाग ले कर चूर्ण ___(मात्रा-२ माशे।) बनावें ।
___ (७८८५) स्तम्भकचूर्णम् ___इसे सेवन करनेसे श्वास और हृद्रोगका नाश | (यो. त. । त. ८०) होता है।
| खसतिलपलमेकं शुण्ठीकर्ष सितापलद्वन्द्वम् । (मात्रा-५-६ रत्ती । अनुपान- | एतच्चूर्ण पयसा पीतं रेतोरयं ध्रुवं पत्ते॥ उष्ण जल ।)
खसखास (पोस्त) ५ तोले, सोंठ ११ तोला
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