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चूर्णप्रकरणम् ]
पञ्चमो मागः
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अनुपान-उष्ण जल । सेंधा नमक मिला चूर्ण कर लें । १ भाग यह चूर्ण, १ भाग पंवाडके हुवा तक्र । मस्तु या कांजी।
बीजोंका चूर्ण और १-१ भाग बायबिडंग, चीता इसके सेवन से शीघही अग्नि दीप्त हो जाती है। और शुद्ध भिलोवा ले कर चूर्ण बनावें । (७८७६) सैन्धवाचं चूर्णम् (३) इसे गोमूत्रके साथ सेवन करने और हित
(वा. भ. । चि. अ. १४) तथा परिमित आहार करनेसे श्वेत कुष्ठ शीघ्रही सिन्धृत्थपथ्याकणदीप्यकानां
नष्ट हो जाता है। चूर्णानि तोयैः पिबतां कवोष्णैः। (७८७८) सोमराजी रसायनम् प्रयाति नाशं कफवातजन्मा
( वृ. मा. । रसायना. ; ग. नि. । ओषधि नाराचनिर्भिन्न इवामयौघः ॥
कल्पा . २) सेंधा नमक, हरं, पीपल और अजवायन । तीब्रेण कुष्ठेन परीतदेहो समान भाग ले कर चूर्ण बनावें।
___ यः सोमराजी नियमेन खादेत् । इसे मन्दोष्ण जलके साथ सेवन करनेसे कफ सम्वत्सरं कृष्णतिल द्वितीयां वातज रोग नष्ट होते हैं।
ससोमराजी वपुषाऽतिशेते ॥ सैन्धवाद्यं चूर्णम् (४) ___ बाबची और काले तिल समान भाग ले कर ( ग. नि. । अर्शों. ४ ; वा. भ. । चि. अ. चूर्ण बनावें । ८; व. से. | अर्शी.)
इसे १ वर्ष तक नियम पूर्वक सेवन करनेसे प्र. सं. ६२३२ " लवणोत्तमादि चूर्णम् " तोत्र कुष्ठ भी नष्ट हो जाता है । देखिये।
(७८७९) सोमराज्याधुबर्तनम् (७८७७) सोमराजी योगः . ( भा. प्र. । म. खं. २ कुष्ठा.)
( ग. नि. । ओषधिकल्पा. २) सोमराजीभवं चूर्ण शृङ्गवेरसमन्वितम् । गोमूत्र सप्तरात्रं शशिकलपलं वासितं मोचयित्वा उद्वर्तनमिदं हन्ति कुष्ठमुग्रं कृतास्पदम् ॥ कुर्याच्छायाविशुष्कां पृथगिति च मापुनाट । बाबची और सेटि समान भाग ले कर चूर्ण
सुपिष्टम् । बनावें । अंशस्ताभ्यां तथांशः कृमिरिपुदहनस्फोट इसे मर्दन करनेसे उग्र कुष्ठ भी नष्ट हो
कृद्भयः स पूर्णो | जाता है । गोमूत्रेणोपयुक्तः प्रमितहितभुजः श्वित्रमाश्वेव | (७८८०) सौवर्चलादिचूर्णम् (१)
हन्ति ॥ (ग. नि. । तृष्णा. १४) । _५ तोले बाबचीके बीजोंको सात दिन तक सौवर्चल विडङ्गानि सैन्धवं कटुकत्रयम् । गोमूत्रमें भिगोए रक्खें और फिर छायामें सुखाकर वातच्छर्दिहरं चूर्णमेतेषां मधुनाऽशितम् ।।
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