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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैपज्य-रत्नाकरः [सकारादि (७८७१) सैन्धवादियोगः (१) (७८७४) सैन्धवाचं चूर्णम् (१) (वै. म. र. । पटल ८ ) ___ (ग. नि. । चूर्णा. ३) सैन्धवपादेन युतं नागरचूर्ण सहौदनं घृतं चापि। सिन्धुसौवर्चलव्योषपथ्याजीरकचित्रकैः । भुजानः पञ्चदिनं प्रहरति गुल्म क्षणे नैव ॥ विडङ्गयावशूकाढपाक्यप्रन्थिकरोमकैः ॥ ४ भाग सेंधा नमक और १ भाग साँठका तृवृच्चव्ययुतैश्चूर्ण तक्रेणाम्लाम्बुना पिबेत् । चूर्ण एकत्र मिला कर रखें। कल्पितं वह्निदीप्त्यर्थ प्रातरुत्थाय मानवः ॥ इसे घृतयुक्त भातमें डाल कर सेवन करनेसे सेंधा नमक, संचल (काला नमक), सांठ, ५ दिनमें गुल्म नष्ट हो जाता है । मिर्च, पीपल, हरं, जोरा, चीतामूल, बायबिडंग, जवाखार, पांशु लवण, पीपलामूल, रोमक लवण, ( मात्रा-१॥-२ मा ।) निसोत और चव समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । (७८७२) सैन्धवादियोगः (२) इसे तक्र या कांजीके साथ सेवन करनेसे ( ग. नि. । छर्य. १४) | अग्नि दीप्त होती है। सैन्धवं सर्पिषा पीतं वातच्छर्दिविनाशनम् । (मात्रा-१॥ माशा ।) किंवा यवानिका चूर्ण भक्षितं तां विनाशयेत् ॥ (७८७५) सैन्धवाचं चूर्णम् (२) सेंधा नमकके चूर्णको धीके साथ पीनेसे या (भै. र. । अग्निमां.) अजवायनका चूर्ण सेवन करनेसे वातज दि नष्ट, सैन्धवं चित्रकं पथ्या लवङ्गं मरिचं कणा। होती है। । दङ्गणं नागरं चव्यं यमानी मधुरी चचा । (मात्रा--१॥-२ माशे।) द्रव्याणि द्वादशैतानि समभागानि चूर्णयेत् । (७८७३) सैन्धवादियोगः (३) भावयेन्निम्बुकद्रावैस्त्रिसप्ताहं प्रयत्नतः ।। ( ग. नि. । विषा. ३ ) ततो मापद्वयं चूर्ण वारिणोष्णेन पाययेत् । । ससैन्धवेन तक्रेण मस्तुना काञ्जिकेन ना ॥ मरिचैस्तुल्यं निम्बबीजं तयोःसमम् । सैन्धवाद्यमिदं चूर्ण सद्यो वह्नि प्रदीपयेत् ॥ घृतमध्वायुतो हन्ति विपं स्थावरजङ्गमम् ॥ सेंधा नमक, चीतामूल, हर्र, लोग, मिर्च, सेंधा नमक और काली मिर्चका चूर्ण १-१ पीपल, मुहागेकी खील, सेठ, चव्य, अंजवायन. भाग तथा नीमके बीज (निम्बौली) २ भाग ले कर सौंफ और वन समान भाग ले कर चूर्ण बनार्वे । चूर्ण बना। तदनन्तर उसे नीबूके रसकी २१ भावना दें और इसे घृत और शहद में मिला कर खिलानेसे सुखाकर रख लें। स्थावर और जङ्गम विष नष्ट होता है। मात्रा-२ माशे। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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