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चूर्ण प्रकरणम् ]
और मिसरी १० तोला ले कर चूर्ण बनावें ।
इसे दूध के साथ सेवन करनेसे वीर्यस्तम्भन होता है ।
पञ्चमो भागः
(७८८६) स्नुक्क्षारभावित पिप्पलिः (व. से. । शोथा. )
स्नु क्षारभाविताः कृष्णाः पथ्या मूत्रेण वा युताः । योजिताः शमयन्त्याशु शोथं श्लेष्मभवं नृणाम् ॥ पीपलको स्नुक ( सेहुंड - थूहर ) के क्षारके पानीकी कई भावना दे कर सुखा लें ।
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इनके सेवन से कफजशोथ नष्ट होता है इसी प्रकार हरौको गोमूत्र की भावना दे कर सेवन करने से भी कफज शोथ नष्ट हो जाता है । (७८८७) स्नुहोयोगः ( व. से. । उदरा. )
Fast पयो भावितानां पिप्पलीनां पयोशनः । सहखमुपयुञ्जीत शक्तितो जठरामयी ||
पीपलोंको स्नुही ( सेंड - थूहर ) के दूधकी भावना दे कर सुखा लें ।
( नित्य प्रति २, ५, ७ या अधिक पीपलोको दूधमें पका कर दूध पीना चाहिये और वे पीपल भी खा लेनी चाहियें । भूख प्यासमें केवल दूध ही पीना चाहिये । शक्ति अनुसार पीपलांकी संख्या बढ़ाते जाना चाहिये । कुल मिलाकर १००० पीपल सेवन करनी चाहियें ।)
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( वृ. मा. ग. नि. । वाजीकरणा; न मृ. । त. ३; व. से. । वाजीकर. ; सु. सं. । चि. अ. २६ )
स्वयं गुप्तेक्षुरकयो बजचूर्ण सशर्करम् ।
इनके साथ दूध पकाकर पीने से उदर रोग धारोष्णेन नरः पीत्वा पयसा न क्षयं व्रजेत् ॥
होता है।
कौंच बीज और तालमखाना १-१ भाग तथा खांड २ भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
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(७८८८) स्वगुप्तादिचूर्णम् (ग. नि. । वाजीकरणा . ) स्वगुप्ता क्षीरकाकोली विदारी जीरकद्वयम् । तिलाः सुलुश्चिता भृष्टाः शर्कराज्यमधुप्लुतम् ॥ तच्चूर्ण प्रसृतिं लीवा गच्छति प्रमदाशतम् ।
कौंच के बीज, क्षीरकाकोली, बिदारीकन्द, सफेद जीरा, काला जीरा तथा छिलके रहित भुने हुवे तिल समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसमें उसके बराबर खांड मिला लें ।
इसे घी और शहद में करने से सौ स्त्रियोंसे रमण जाती है ।
मिला कर सेवन करनेकी शक्ति आ
मात्रा- २ पल ।
( व्यवहारिक मात्रा --- २ तोले । ) (७८८९) स्वयंगुप्तादिचूर्णम्
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इसे धारोष्ण दूधके साथ सेवन करने से शुक्र क्षीण नहीं होता ।
( मात्रा-६ माशेसे १ तोला तक 1 ) पाठान्तर के अनुसार तालमखाने के स्थानपर Faster है |