SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १९८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [संकारादि (७८१५) सौराष्ट्रिकादिक्वाथः । ये दस ओषधियां स्तन्यशोधक कषाय-द्रव्यों में ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ४) मुख्य हैं । सौराष्ट्रिकासीसमहौषधानि ( इनका क्वाथ पीनेसे बच्चेकी मांका. दूध दुरालभाजाजिप्रवालकं च । दोष-रहित हो जाता है।) दावी यांनी ककुभं समझा (७८१८) स्थलपनकल्क: ___ क्वाथः ससर्पिर्यकृदा हन्ति ॥ ।. (वृ. मा. । शोथा.) सोरठी माटी, कसीस, सेांठ, धमासा, जीरा, | स्थलपनमयं कल्क पयसाऽऽलोडय पाययेत् । प्लीहामयहरं चैव सर्वाकाङ्गशोथजित ।। जीवशाक, दारुहल्दी, अजवायन, अर्जुन और ___स्थलपमके कल्कको दूधमें मिलाकर पीनेसे मजीठ समान भाग ले कर क्वाथ बनावें।। प्लीहा और सींग तथा एकांग शोथका नाश इसमें घी मिला कर पीनेसे यकृद् रोग शीघ्रही होता है। मष्ट हो जाता है। (७८१९) स्थिरादिक्वाथः (७८१६)स्तन्यजननोदशको महाकषायः (वृ. नि. र. । ज्वरा.) (च. सं. । सूत्र. १ अ. ४ ) स्थिरासामलकादारुश्रीष्टकमहौषधेः । वीरणशालिपष्टिकेक्षुबालिकादर्भशकाशगुन्द्रे- भृतं शीतं जलं दधासितामधुविमिश्रितम् ॥ स्फटकतृणमूलानीति दशेमानि स्तन्यजननानि चातुर्थिके ज्वरे तीब्रे मन्दे चैवाथ पावके । भवन्ति । शालपर्णी, आमला, देवदारु, चीरका काष्ठ " खस, शालिधान, षष्टिक (साठा), इक्षु बा- और सेठ समान भाग ले कर काथ बनावें। लिका (इक्षुभेद), दाभ, कुश, काश, गिलोय, इत्कट | इसे ठंडा करके उसमें मिश्री और शहद मिला और रोहिष तृण; इनको जड़ । ये दश ओषधियां कर पीनेसे तीब्र चातुर्थिक ज्वर और अग्निमांद्यका स्तन्यजनक हैं। | नाश होता है। (७८१७) स्तन्यशोधनो दशको महाकषायः (७८२०) स्थौल्यहरयोगः (च. सं. । सूत्र. १ अ. ४) (वै. म. र. । पटल १२) पाठामहौषधसुरदारुमुस्तमूर्वागुडूचीवत्सक- अतिस्थूलशरीरो यस्तिलतैलं मगे पिबेत् । फलकिराततिक्तकटुरोहिणीसारिवा इति पिवेदसनसारस्य क्वायं वा मधुसंयुतम् ॥ दशेमानि स्तन्यशोधनानि भवन्ति । प्रातःकाल तिलका तेल या असना वृक्षके पाठा, सांठ, देवदारु, नागरमोथा, मूर्वा, सारका क्वाथ शहद मिला कर पीनेसे शरीरकी गिलोय, इन्द्रजौ, चिरायता, कुटकी और सारिवा; स्थूलता नष्ट हो जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy