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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि (७८०४) सिंह्यादिक्वाथः (२) (७८०७) सुरभ्यादिकषायः ( वृ. नि. र. ; यो. र. । ज्वरा. ) (यो. र. ; वृ. नि. र. । ज्वरा.) सिंहीनागरपुष्करैः सकटुकै रास्नायडूचीयुतै र्भागीकर्कटङ्गिकाशठिसमैदःस्पर्शवासानैः। सुरभिसलिलयुक्तः सिंहिकाश्रीफलाभ्यां पीतं जिसकहारि वारि भवति ब्राह्मीवचामिश्रितैः प्रवरलवणयासाविश्वपाषाणभेदैः। भोक्तं वैधवरेण वन्धमुनिभिनिम्बमिश्रं शृतम॥ पवनरिपूजयामिः संयुतः क्याथ एष कटेली, सेठ, पोखरमूल, कुटको, रास्ना, | प्रतिदिनमपि पीतो हन्त्यमिन्यासशूलम् ॥ गिलोय, भरंगी, काकड़ासिंगी, कचूर, धमासा, कटेलो, बेलकी छाल, धमासा, सांठ, अरण्डबासा, नागरमोथा, ब्राह्मी, बच और चिरायता समान | | मूल और पाषाणभेद समान भाग मिलित ५ तोले भाग ले कर काथ बनावें। लेकर ४० तोले गोमूत्रमें पकावें और १० तोले यह क्वाथ जिद्दक सन्निपातको नष्ट रहने पर छान लें। करता है । इसमेंसे ५ तोले क्वाथमें १ माशा सेंधा(७८०५) सुदर्शनामूलयोगः नमक मिलाकर पीनेसे अभिन्यास सन्निपात और (रा. मा. ; स्त्रीरोगा. ३०) शूल नष्ट होता है। होणामजस्रं प्रदरामयस्य (७८०८) सुरसादिक्वाथः प्रवृत्तिमेतच्छममेति सद्यः। (ग. नि. । ज्वरा. १) मुश्लक्ष्णपिष्टेन पयोन्वितेन सुरसादारुपिप्पल्यो धान्यकः सदुरालभः । पीतेन मूलेन सुदर्शनायाः ॥ पाक्यं सलवणस्नेहं सोष्णं वातज्वरापहम् ।। सुदर्शनाकी जड़का दूधके साथ अत्यन्त ___ तुलसी, देवदारु, पीपल, धनिया और धमासा; गारीक पीस कर पीनेसे स्त्रियोंको प्रदर रोग शीघ्र ही इनके मन्दोष्ण क्वाथमें सञ्चल. (काला नमक), नष्ट हो जाता है। सेंधा और घृत मिला कर पीनेसे वातज्वर नष्ट (७८०६) सुनिषण्णादिकषायः होता है। (वै. म. र. । पटल १) (७८०९) सुरसादिगणः मनिषण्णवेणुपत्रशुण्ठोमुस्ताभृतः क्याथः। (यो. र.। अपस्मारा. ; धन्व. । बाल. ) हन्याबरमतिवेगं दोषसमूहोद्भवं त्रिदिनात् ॥ सरसा श्वेतसरसा पाठा फनी फणिज्जकः । सुनिषण्णक, बांसके पत्ते, सेांठ और नागर- सौगन्धिकं भूस्तृणकं राजिका श्वेतावरी ॥ मोथा; इनका क्वाथ अनेक दोषोंसे उत्पन्न तीन कट्फलं खरपुष्पा च कासमर्दश्च शल्लकी । ज्वरको भी ३ दिनमें नष्ट कर देता है। विडामय निर्गुण्डी कर्णिकार उदुम्बरः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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