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पायप्रकरणम्
पश्चमो भागः
१९५
यह काथ सन्निपात चर, श्वास, अतिसार. | कटेलीके क्वाथमें पीपलका चूर्ण मिला कर शूल और अरुचिको नष्ट करता है। पीनेसे कासका नाश होता है।
(७७९८) सिंहास्यादिक्वाथः (१) (७८०२) सिंह्यादिकषायः ( वृ. नि. र. । कासा. ; यो. र । कासा.)
(वृ. नि. र. । ज्वरा.) सिंहास्यामृतसिंहीनां क्वाथं मधुयुतं पिवेत् । ।
सिंही व्याघ्री ताम्रमूली पटोली पिबेत्सपित्तकफजे कासे श्वासे ज्वरे क्षये ॥
शृङ्गी भाी पुष्करं रोहिणी च । बासा (अडूसा), गिलोय और कटेलीके
साकं शव्या शैलमल्याश्च बीजं क्वाथमें शहद मिला कर पोनेसे पित्तकफज ज्वर,
वासं हन्यात्सनिपाते दशाङ्गः ॥ खांसी, श्वास, ज्वर और क्षयका नाश होता है ।
छाटी कटेली; बड़ी कटेली, लज्जालुकी जड़, (७७९९) सिंहास्यादिक्वाथः (२)
पटोल, काकडासिंगी, भरंगी, पोखरमूल, कुटकी, ( व. से. । शोथा ; भै. र. ; वृ. मा. । शोथा. | कचूर और कुरैयाके बीज समान भाग ले कर वृ. मा.। अम्लपित्ता. ; वृ. नि. र. । शोथा.)
क्वाथ बनावें । सिंहास्यामृतभण्टाकीक्वाथं कृत्वा समाक्षिकम् । यह क्वाथ सन्निपात ज्वरमें होने वाले श्वास पीत्वा शोथं जयेज्जन्तुः कासं श्वास ज्वरं वमिम् ॥ को नष्ट करता है।
बासे (अडूसे), गिलोय और कटेलीके काथमें शहद मिला कर पीनेसे शोथ, कास, श्वास और
(७८०३) सिंघादिक्वाथः (१) ज्वरका नाश होता है।
(व. नि. र. । श्वासा.) (७८००) सिंहिकादिकषायः सिंहीनिशासिंहमुखीगुडूची (वृ. नि. र. । ज्वरा.)
विश्वोपकुल्याभृगुजाघनानाम् । सिंहीयवानीछिन्नानां क्वाथश्चपलया युतः।। कृष्णामरीचैर्गिलितः कषायः कफवातज्वरश्वासशूलपीनसकासजित ॥
श्वासाठवीदाहपयोद एषः॥ __ कटेली, अजवायन और गिलोयके क्वाथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पीनेसे कफवातज ज्वर,
कटेली, हल्दी, बासा (अडूसा), गिलोय, श्वास, शूल, पीनस और कासका नाश होता है।
सांठ, दन्तीमूल, भरंगी और नागरमोथेके क्वाथमें
| पीपल और काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीनेसे (७८०१) सिंहीकषायः (वृ. नि. र.। कासा.)
वास नष्ट होता है। अयि रत्नकले नीलनलिनच्छदनेक्षणे। यह क्वाथ श्वासरूपी दावानलके लिये मेघके सिंहीकषायः सकणः कासग्रासकरः क्षणाद ॥ समान है ।
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