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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [सकारादि (७७९३) सारिवादियोगः । (७७९५). सितादिक्वाथः (यो. र. । दन्तरोगा.) (वृ नि. र. । ज्वरा.) | ससितो निशिपर्युषितःभातर्धान्याकतण्डुलक्यायः पिष्टवा च सारिवापण दृढ दन्तषु धारयत्। पीतः शमयत्यचिरादन्तर्दाहं ज्वरं पैत्तम् ॥ पतन्ति दन्तकीटाश्च चाश्चल्यं हरति क्षणात् ।। धनिये और चावलोंका काथ बना कर उसे __ सारिवाके पत्तोंको बारीक पीस कर दांतके मिट्टीके पात्रमें भर कर रात्रिको ढक कर रख दें। नीचे रखनेसे दन्तकृमि निकल कर दांत हिलना। इसमें प्रातःकाल मिश्री मिला कर पीनेसे अन्तर्दाह बन्द हो जाता है। और पित्तज्वर शीघ्र नष्ट होता है। (७७९४) सालसारादिगणः (७७९६) सिन्धुवारक्वाथ: ( भा. प्र. ; व. से. । ज्वरा. ; भै. र. । ज्वरा.) (सु. सं. । सू. अ. ३८) सिन्धुवारदलक्वार्थ कणाढयxकफजे ज्वरे । सालसाराजकर्णखदिरकदरकालस्कन्धक्रमुक- जवयोश्च बले क्षीणे कर्णे च पिहिते पिबेत् ।। भूर्जमेषशृङ्गीतिनिशचन्दनकुचन्दनशिशपाशि- संभालुके पत्तोंके काथमें पीपलका चूर्ण रीषासनधवार्जुनतालशाकनक्तमालपूतीकाश्व- | मिला कर पीनेसे कफ ज्वर नष्ट होता है। जंघाका कर्णागुरूणि कालीयकश्चेति । बल क्षीण होने और कानोंके बन्द होनेमें यह काथ सालसारादिरित्येष उपयोगी है। गणः कुष्ठविनाशनः । __ (७७९७) सिंहास्यादिकषायः मेहपाण्ड्वामयहरः ( व. से. । ज्वरा.) कफमेदोविशोषणः ॥ 'सिंहास्य पर्पटारिष्टं यष्टिधान्यकनागरम् । सालसार ( साल भेद ), अजकर्ण (असन), दारूग्रगन्धेन्द्रयवाः श्वदंष्ट्रा ग्रन्थिकं तथा ॥ खैर, कदर (खैर भेद), तेन्दु वृक्ष, सुपारी, भूर्ज, । एषां कषायमहनि सन्निपातज्वरे पिबेत् । मेढासिंगी, तिनिश ( तिरिच्छ वृक्ष ), लाल चन्दन, श्वासातिसारघ्नं शूलारुचिहरं परम् ॥ पतंग, शीसम, सिरस, असन, धध, अर्जुन, ताड़, बासा (अडूसा), पित्तपापडा, नीमकी छाल, सागोन, करञ्ज, पूतिकरञ्ज, शाल, अगर और मुलैठी, धनिया, सेठ, देवदारु, बघ, इन्द्रजौ, दारुहल्दी। गोखरु और पीपलामूल समान भाग ले कर काथ यह सालसारादिगण कुष्ठ प्रमेह और बनावे । पाण्डुको नष्ट करता है तथा कफ और मेदको | x सोषणमिति पाठान्तरम् (पाठान्तरके सुखाता है। अनुसार पीपलके स्थानमें मिर्च है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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