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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायप्रकरणम् ] पचमो भागः . १९३ (७७८७) सारिवादिक्वाथः (२) (७७९०) सारिवादिक्वाथः (५) ( यो. र. । बाल रोगा, ; व. से. । बाल. ; भा. | (ग. नि. । छर्य. १४) . प्र. । म. खं. २ बाल.) | सारिवोशीरमधुकं कुस्तुम्वरुफलानि च । सारिवातिललोध्राणां कषायो मधुकस्य च । युक्त्या क्वाथ्य जलं पेयं मधुना छर्दिनाशनम् ॥ संसाविणी मुखे शस्तो धावनार्थ शिशो सदा॥ सारिवा, खस, मुलैठी और कुस्तुम्बरु समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । - सारिवा, तिल, लोध और मुलैठी समान - इसमें शहद मिला कर पिलानेसे छदि नष्ट भाग ले कर क्वाथ बनावें। होती है। बच्चे के मुंहसे लार बहती हो तो इस काथसे (७७९१) सारिवादिगणः (१) उसका मुख धोना चाहिये ।। (वा. भ. । सू. अ. १५) (७७८८) सारिवादिक्वाथः (३) | सारिवोशीरकाश्मयमधूकशिशिरद्वयम् । (वृ. नि. र. । बालरोगा.) यष्टीपरूपकं हन्ति दाहपित्तास्रतृड्ज्वरान् ॥ . सारिवोत्पलकाश्मच्छिमापयकपर्पटैः।। सारिवा, खस, खम्भारी, महुवेकी छाल, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, मुलैठो और फालसा क्वाथः पीतो निहन्त्या शिशूनां पैतिक ज्वरम् ।। | समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । सारिवा, कमल, खम्भारीकी छाल, गिलोय, ___ यह क्वाथ दाह, रक्तपित्त, पिपासा और पनाक और. पितपापड़ा समान भाग ले कर काथ ज्वरको नष्ट करता है। बनावें । (७७९२) सारिवादिगणः (२) यह काथ बच्चों के पित्त ज्वरको नष्ट (सु. सं. । सू. अ. ३८) करता है। सारिवामधुकचन्दनकुचन्दनपद्मककाश्मरीफल(७७८९) सारिवादिक्वाथः (४) । मधूकपुष्पाण्युशीरश्चेति । (ग. नि. । ज्वरा. १) सारिवादिः पिपासानो रक्तपित्तहरो गणः। सारिवाति विषाकुष्ठसुराख्यैः सदुरालभैः।। पित्तज्वरप्रशमनो विशेषादाहनाशनः । सारिवा, मुलैठी, लाल चन्दन, पतंग, पाख, मुस्तया च कृतः क्वाथो हन्यात्कफकृतं ज्वरम् ॥ खम्भारीके फल, महुवेके फूल और खस । इन सारिवा, अतीस, कूठ, देवदारु, धमासा और ओषधियोंके समूहको सारिवादिगण कहते हैं। नागरमोथा समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । । सारिवादि गण, पिपासा, रक्तपित्त, पितज्वर यह क्याथ कफ-ज्वरको नष्ट करता है। और विशेषतः दाहको नष्ट करता है। ૨૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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