SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुग्गुलुपकरणम् ] पश्चमो भागः १७९ विधि चूर्ण बनावें । तदनन्तर उसमें ८० तोले । इसके सेवनसे ज्वर और शूलका नाश खांड मिला कर सुरक्षित रक्खें । होता है। इसे अन्न पानादिमें प्रयुक्त करना चाहिये। ( मात्रा-१॥-२ माशा । ) यह चूर्ण यस्मा रोगमें अग्निमांद्य और मलभे- ___(७७४६) षोडशाङ्गपूर्णम् (२) दकी दशामें उपयोगी है । यह, रोचक, बल्य और (वृ. नि. र. । ज्वरा.) दोपन है तथा श्वास, कास और पार्श्वपीडाको | भूनिम्बपथ्याघनकण्टकारी नष्ट करता है। प्रायन्तिकानागरयासतिता। (७७४५) षोडशाङ्गचूर्णम् (१) वाटचालकचूंरकणापटोली (यो. चि. म. । अ. २) । क्षुद्राजलग्रन्थिकपपैठाव ॥ किरातं तितकं तिक्ता गुड्ची चाभया धनम् । एषां ततो षोडशकाचूर्ण धन्वयासकवायत्री क्षुद्रा शृङ्गी महौषधी ॥ । ज्वरान् समस्तान्विषमाभिहन्ति । पटं च प्रियङ्ग च पटोलं मगधी षटी। । चिरायता, हर्र, नागरमोथा, कटेली, वायषोडशामिति प्रोक्तं ज्वरशूलविनाशनम् ॥ माना, सांठ, धमासा, कुटकी, खरैटी, कचर, पीपल, चिरायता, नीमकी छाल, कुटकी, गिलोय, हरे, पटोल, कटेली, सुगन्धवाला, पीपलामूल और पित्तनागरमोथा, धमासा, बायमाणा, कटेली, काकड़ा- पापड़ा समान भाग ले कर चूर्ण बनावें। सिंगी, सेठ, पित्तपापड़ा, फूलप्रियंगु, पटोल, यह चूर्ण समस्त विषम ज्वरोंको नष्ट पीपल और कचूर समान भाग ले कर चूर्ण करता है । बनावें। (मात्रा-२-३ माशा ।) इति षकारादिचूर्णप्रकरणम् अथ षकारादिगुग्गुलु-प्रकरणम् (७७४७) षडङ्गगुग्गुलुः (१) रास्ना, गिलोय, देवदारु, सोंठ और अरण्ड | मूल; इनका चूर्ण १-१ भाग तथा शुद्ध गूगल (र. र. स.। उ. अ. २१) ६ भाग लेकर सबको एकत्र मिला कर थोड़ा सा रास्नामृतादेवदारुशुण्ठीवातारितुल्यकम् । | घी मिलाकर करें। गुग्गुलं सर्वतुल्यांशं कुट्टयेद् घृतवासितम् ॥ मात्रा-११ तोला । (व्यवहारिक मात्रा-१ कपोशं भक्षयेच्चानु ख्यातः षडागुग्गुलु:॥ | माशा ) (इसके सेवनसे वातव्याधि नष्ट होती है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy