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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५८ देखिये । श्रीरामरसः प्र. सं. ६१५० रामरस: ( श्रीरामरसः ) www. kobatirth.org श्रीवेतालो रसः प्र. सं. ७११८ वेतालो रसः देखिये । (७६८०) श्रीवेष्टादिचूर्णम् (उडूलनम्) (र. चं । ज्वरा. ; वृ. नि. र. | सन्निपाता. ) श्रीवेष्टफलसम्भूतभस्मभागाष्टकं शुभम् । मरीचस्य च चत्वारो रसस्यैको विषस्य च ॥ सूक्ष्मचूर्ण ततः कृत्वा मर्दयेदतियत्नतः । असाध्येsपि हि शीताङ्गे स्वेदो याति हि निश्चितम् || भारत - भैषज्य - सरल वृक्ष (चीर) के फलोंकी भस्म ८ भाग, काली मिर्च का चूर्ण ४ भाग तथा शुद्ध पारद और बछनाग १ - १ भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर भली भांति खरल करें । $6 'शूलगज केशरिरसः " इसे रोगीके शरीर पर मर्दन करनेसे असाध्य शीताङ्ग भी अवश्य नष्ट हो जाता है । श्री शूलगजकेशरिरसः देखिये । प्र. सं. ७६५४ (७६८१) श्लीपदगजकेशरीरसः (भै. र. 1 इलीपदा. ; धन्व. । स्लीपदा. ) व्योषामृतयमानी च सुतोऽग्निर्गन्धकं शिला । सौभाग्यं जयपालच चूर्णमेकत्र कारयेत् ॥ [शकारादि भृङ्गगोक्षुरजवीर कितोयैर्विमर्दयेत् । अस्य गुञ्जामितं खादेदुष्णतोयानुपानतः ॥ श्लीपदं दुस्तरं हन्ति प्लीहानं हन्ति सेवितः सोंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध बछनाग, अजवायन, शुद्ध पारद, चीतामूल, शुद्र गंधक, शुद्ध मनसिल, सुहागेकी खील और शुद्ध जमालगोटा समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर भंगरे, गोखरु, जम्बीरी नीबू और अदरकके रसकी १-१ भावना दे कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें । - रत्नाकरः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे कष्ट - साध्य श्लीपद और प्लीहा वृद्धिका नाश होता है । (७६८२) श्रीपदारिलौह: ( भै. र. र. र. । स्लीपदा. ) हरातक्या बिभीतस्य धायाश्चूर्ण सुचूर्णितम् पट्तोलकप्रमाणेन ग्राह्यं तेषां गुणैषिणा ।। तोलद्वयं कान्तलौह चूर्ण तावच्छिलाजतु । | कृत्वैकत्र समस्तेषु त्रिफलाक्वाथभावना || पदाद्यदध्वंसी सर्वव्याधिविनाशनः । पदारिति ख्यातो लौहो मुनिभिरचितः ॥ हर, बहेड़े और आमले का चूर्ण ६-६ तोले एवं कान्त लोह भस्म और शुद्ध शिलाजीत २-२ तोले ले कर सबको एकत्र मिलाकर त्रिफला काथकी भावना दें। इसके सेवन से श्लीपदादि रोग नष्ट होते हैं । ( मात्रा - २ माशे । अनुपान - त्रिफला काथ | ) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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