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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम्] पञ्चमो भागः १५७ - बल्यं वृष्यमशेषदोपहरणं धातुमदं कासिनाम् । श्रीमृत्युञ्जयो रसः मेध्यं हृघरसायनं हरमुखाज्ज्ञात्वा मया भाषितम्। मृत्युञ्जयरसः (२) देखिये। छोटी कटेली, बासा, शालपर्णी, बेलछाल, | (७६७९) श्रीरसराजः अरलुछाल, पाढल, पृश्निपर्णी, भरंगी, अद्रक, चीतामूल, पीपलामूल, गोखर, चव्य, अपामार्ग ( भै. र. । ज्वरा.) और कौंचकी जड़; इनके १०-१० तोले स्वरस । भागैकं रसराजस्य भागश्च हेममाक्षिकात् । ( या काथ ) में ५ तोले अभ्रक भस्मको पृथक् भागव्यं शिलायाश्च गन्धकस्य त्रयो मताः । पृथक मर्दन करके सुरक्षित रक्खें । तालकाष्टादशभागः शुल्वं स्याद्भागपञ्चकम् । मात्रा-आधी रत्तो। भल्लातकात् त्रयो भागाः सर्वमेकत्र चूर्णयेत् ॥ यह रस ५ प्रकारकी खांसी, स्वरभेद, उरः- वज्रीक्षीरप्लुतं कृत्वा दृढे मृण्मयभाजने । क्षत, हिचकी, ज्वर, श्वास, पीनस, प्रमेह, गुल्म, विधाय सुदृढां मुद्रां पचेद्यामचतुष्टयम् ॥ अरुचि, क्षय. राजयक्ष्मा, अम्लपित्त, दाह, मोह, स्वाङ्गशीतं समुद्धत्य खल्लयेव सुदृढं पुनः सर्वदोषज शूल, कफ, कृमि, छर्दि, पाण्डु, हली गुआद्वयमितश्चास्य पर्णखण्डेन दापयेत् । मक, गलरोग, विस्फोटक, कामला, अग्निमांद्य, ग्र रसराजः प्रसिद्धोऽयं ज्वरमष्टविधं जयेत् ॥ हणी, यकृत् , प्लीहा, अर्श तथा आम और कफ जनित रोगोंको नष्ट करता है। शुद्ध पारद १ भाग, स्वर्ण माक्षिक भस्म १ भाग, शुद्ध मनसिल २ भाग, शुद्ध गन्धक ३ भाग, यह बल्य, वृष्य, धातुवर्द्धक, मेध्य, हृद्य शुद्ध हरताल १८ भाग, ताम्र भस्म ५ भाग और और रसायन है। शुद्ध भिलावे ३ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी श्रीजयमङ्गलो रसः कजली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका प्र. सं. २१०३ जयमङ्गलो रसः (१) चूर्ण मिला कर सबको सेहुंड ( थूहर ) के दूधमें देखिये। घोट कर दृढ मृत्पात्रमें भर दें और उसके मुखपर श्रीनृपतिवल्लभरसः शराव ढककर सन्धि बन्द कर दें एवं उस पर ३-४ कपड़मिट्टी करके सुखा लें और चूल्हेपर (भै. र. । रसायना.) चढ़ाकर ४ पहरकी अग्नि दें । तदनन्तर जब वह प्र. सं. ३६६४ नृपतिवल्लभरसः देखिये। । स्वांग शीतल हो जाय तो उसमेंसे औषधको श्रीमन्मथरसः निकालकर पीस लें। (रसं. सा. सं. । रसा. वाजी. ) इसमेंसे २ रत्ती रस पानमें रखकर खिलानेसै प्र. सं. ५५२० मन्मयानरसः देखिये। आठ प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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