SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि - पादशेषे शृतं द्रोणे सुपूते वस्त्रगालिते।। अभ्रक भस्म, कंकुष्ट, चीतामूल, जिमीकन्द (सूरण) लौहभस्माष्टपलकं पचेदाज्यसम भिषक् ।। शरपुंखा, घण्टाकर्ण, पलाशके बीज, क्षीरकञ्चुकी, अर्कस्य द्विपलं क्षीरं स्नुहीक्षीरं चतुःपलम् । | मूसली ( तालमूली), हर, बहेड़ा, आमला, बायपलद्वयं कौशिकस्य गन्धकस्य पलं तथा ॥ बिडंग, निसोत, दन्तीमूल, हुलहुल, इन्द्रायणकी पला पारदं सिद्धे वक्ष्यमाणन्तु निक्षिपेत । जड़, पुनर्नवा और वज्रवल्ली (हड़जोड़ी); इनका जयपालं ताम्रमभ्रं शुद्धमत्र प्रदापयेत् ॥ समान भाग मिश्रित चूर्ण ४० तोले मिला कर । स्निग्ध पात्रमें भर कर सुरक्षित रक्खें । कंकुष्ठवदिकन्दानां शराख्यात् घण्टकर्णकात् । इसे यथोचित मात्रा और अनुपानके साथ पलाशस्य च वीजानि कञ्चुकी तालमूलिका ॥ देनेसे समस्त प्रकारके शोथ अवश्य नष्ट हो जाते त्रिफलायाः क्रिमिरिपोस्विदन्तिभवं तथा । हैं। जो शोथ पुराने और कष्ट साध्य हों वे भी सूर्यावर्तगवाक्ष्योश्च वर्षाभूर्वज्रवल्लिका | इससे शीघ्र ही नष्ट हो सकते हैं । शोथोदरके एषां लौहसमां मात्रां स्निग्ये भाण्डे निधापयेत लिये तो इससे उत्तम कोई औषध ही नहीं है। अतोऽस्य भक्षयेन्मात्रामनुपानश्च युक्तितः॥। इसके अतिरिक्त यह रस समस्त उदर रोग, पाण्डु, हन्ति सर्वोदरं सिद्धं नात्र कार्या विचारणा। कामला, हलीमक, अर्श, भगन्दर, कुष्ठ, ज्वर और ये च शोथाः मुर्वा राश्चिरकालानुबन्धिनः। | गुल्मको भी नष्ट करता है। ते सर्वे नाशमायान्ति तमः सूर्योदये यथा। (मात्रा-२-३ रत्ती । ) (७६७८) श्रीडामरानन्दाभ्रम् नातः परतरं किश्चिच्छोथोदरविनाशनम् ॥ ( भै. र. । कासा.) उदराणि पाण्डुरोगं कामलाच हलीमकम् ।। म् अभ्रस्यामलमारितस्य तु पलं क्षुद्राटरूपस्थिरा। भर्शो भगन्दरं कुष्ठ ज्वरं गुल्मश्च नाशयेत् liबिल्लश्योणाकपाटलाकलसिकाः सब्रह्मयष्टयाईकाः पुनर्नवा (बिसखपरा-साठी), गिलोय, चित्रग्रन्थिकगोक्षुरं सचविकं मार्गात्मगुप्तान्वितम्। चीता, इन्द्रायणकी जड़, मानकन्द, सहजनेकी छाल, सत्वैर्मर्दितमेकशश्च पलिकैर्गुञ्जार्द्धकं भक्षितम् ॥ हुलहुल और आककी जर ४०-४० तोले ले | कासं पञ्चविधं स्वरामयमुरोघातं च हिक्कां ज्वरम्। कर सबको ३२ सेर पानीमें पकावें और ८ सेर श्वासं पीनसमेहगुल्ममरुचिं यक्ष्माम्लपित्तक्षयम्।। रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें लोहभस्म दाहं मोहमशेषदोषजनितं शूलं बलास क्रिमिम् । ४० तोले, घी १ सेर, आकका दूध २० तोले, छर्दि पाण्डहलीमकंगलगदं विस्फोटकं कामलोम्।। थूहर (स्नुही) का दूध ४० तोले, शुद्ध गूगल १० मन्दाग्निं ग्रहणीक्षयश्च यकृतं प्लीहानमर्शासि तोले और ५ तोले गन्धक तथा २।। तोले पारदकी कजली मिला कर पुनः पकावें । जब पाक तैयार हन्यादामकफोद्भवानपि गदान श्री डामरान. हो जाय तो उसमें शुद्ध जमालगोटा, ताम्र भस्म, । न्दाभ्रकम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy