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रसमकरणम् ]
पञ्चमो भागः श्वेत यमान्योश्च चूर्ण पूर्णाशयं पुनः ।। (७६७५) शोथारिरसः (२) पिधानिकां ततो दचा नीरन्त्रां मूषिकां कुरु ॥ (र. चं. ; वृ. नि. र. ; यो. र. । शोथा.) ततो लघुपुटे पाकं विधानेन प्रदापयेत् । हिङ्गलं जयपालं च मरिचं टङ्कणं कणाम् । पुनस्तन्तु रसं नीत्वा गन्धकेन समेन च ॥ सम्मी वल्लः सघृतः सर्वशोफहरः परः ।। कज्जलीं कारयेद्धीरः पुनस्तां मिश्रयेत्समः । शुद्र हिंगुल और जमालगोटा तथा काली चतुःसमं तथा कुर्यादेभिव्यैः सुशोधितः ॥ मिर्च, सुहागेकी खोल और पीपलका चूर्ण, समान विषताम्रकरड्रैश्च तच्चूर्ण स्थापयेत्पुनः। भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके रक्खें । खटिकाये गृहीतं तच्चूर्ण जिहोपरि क्षिपेत् ॥ मात्रा-२ रत्ती । गिलनार्थ चतुकर्षप्रमाणायाः प्रपानकम् । इसे धीके साथ सेवन करनेसे समस्त प्रकारके शर्करायाः पिबेच्चानु सर्वशोथे महौषधम् ॥ शोथ नष्ट होते हैं । भूरि प्रस्रुत्य प्रसत्य महाशोथाद्विमुच्यते ॥ (७६७६) शोथारिलौहम् __ हिंगुलोत्थ पारदको श्वेत दूर्वा (दूब) के
( भै. र. । शोधा.) रसकी भावना दे कर एक मूषामें डालें और उसके
अयोरजस्यूपणयावशूकं ऊपर सफेद दूब ( श्वेत दूर्वा ) और अजवायनका
चूर्णश्च पीतं त्रिफलारसेन । चूर्ण इतना डालें कि मूषा भर जाए । तदनन्तर शोथं निहन्यात्सहसा नरस्य उस पर ढकना लगा कर सन्धि बन्द कर दें और
यथाशनिक्षमुदप्रवेगः॥ फिर ४-५ कपडमिट्टी करके सुखा लें और उसे : सांठ, मिर्च, पीपलका चूर्ण तथा जवाखार लघुपट में पकावें । तत्पश्चात् मूषाके स्वाग शीतल १-१ भाग और लोह भस्म ४ भाग ले कर होने पर उसमेंसे पारदको निकाल कर उसके बरा- सबको एकत्र मिला कर खरल करें। बर गन्धक मिलाकर कज्जली बनावें और फिर इसे त्रिफला काथके साथ सेवन करनेसे शोथ उसमें शुद्ध बछनाग, ताम्र भस्म, और वङ्ग भस्म अत्यन्त शीघ्र नष्ट होता है। (प्रत्येक कज्जलोकी बराबर ) मिला कर
(मात्रा-२-३ रत्ती ।) खरल करें।
(७६७७) शोथोदरारिलौहम् ___ इसमेंसे (आधी रत्ती) औषध जिह्वापर रखकर (भै. र. : ब. से. ; र. र. । उदरा. ; 2. का. ५ तोले खांडके शर्बतसे निगल जाएं।
धे. । शोथा. ) इसके सेवन से मूत्र विरेचन हो कर शोथ | पुनर्णवामृतावह्निगवाक्षीमानशिग्रवः । नष्ट हो जाता है ।
सूर्यावर्किमूलश्च पृथगष्टपलं जले ॥
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