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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २ रती १५४ ! गोला बनावें और उसे जामनके पत्तोंमें लपेटकर उस पर मिट्टीका ( १ अंगुल मोख ) लेप करके सुखा ले बदनन्तर उसे लघु पुटमें पकावें और फिर उसके स्वांगशीतल होने पर औषधको निकालकर पीस लें । मात्रा --- www. kobatirth.org त- भैषज्य रत्नाकरः भारत (७६७२) शोधाङ्कुशो रसः ( भै. र. । शोथा. ) इसे सेवन करने से उदरशोथ और समस्त शरीरगत शोथ विशेषतः (शोध युक्त) संग्रहणीका नाश होता है । रसेन्द्रगन्धं मृत लौहताम्रं नागं तथाभ्रं समसङ्ख्यकञ्च । निर्गुण्डिकास्फोतकपित्थनिश्चा पुनर्णवाश्रीफलकेशराजम् ॥ एषां रसैर्भावितमेशश्च गुञ्जाप्रमाणा वटिका विधेया । शोथज्वरारोचकपाण्डुरोगं सर्वाङ्गशोथं विनिवारयेच्च ॥ पित्तान्वितान् वातभवान कफोत्थान शोथाङ्कुशो नाम निहन्ति रोगान् ॥ शुद्ध पारद, गन्धक, लोह भस्म, ताम्र भस्म सीसा भस्म और अभ्रक भस्न समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर सबको संभालु, आस्फोता, कैथकी छाल, इमलीकी छाल, पुनर्नवा - मूल, बेलगिरी और भंगरा : इनके रस की ( या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ शकारादि काथकी ) १ - १ भावना दे कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना है । इनके सेवन से वातज, पित्तज और कफज शोध तथा सर्वांग शोथ और ज्वर, अरुचि तथा पाण्डुका नाश होता है । (७६७३) शोथारिमण्डूरम् ( भै. र. । शोधा. ) गोमूत्रशुद्धमण्डूरं निर्गुण्डीरसभावितपू । मान काककन्दानां रसेष्वपि च भावयेत् ॥ त्रिफलाव्योषचव्यानां चूर्ण कर्षद्वयं पृथक् । चूर्णाद् द्विगुणमण्डूरं गोमूत्रेऽष्टगुणे पचेत् ॥ सिद्धे चूर्ण क्षिपेच्छीते मधुनच पलद्वयम् । निहन्ति सर्वजं शोधं सर्वाङ्गोत्थं न संशयः ।। गोमूत्र में शुद्ध करके भस्म किये हुवे मण्डूर को संभालु, मानकन्द और अदरक के रसकी १ - १ भावना दे कर सुखा लें । तदनन्तर ३५ तो यह मण्डूर ले कर उसे ८ गुने (१६ गुने) गोमूत्र में पकावें और अवलेहके समान गाढ़ा हो जाने पर उसमें २॥ -२ तोले हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल और चवका चूर्ण मिला दें तथा ठण्डा होने पर २० तोले शहद मिलाकर सुरक्षित रखें । इसके सेवन से सर्व दोषज सर्वांग शोथ नष्ट होता है । ( मात्रा - 2 रत्ती । ) (७६७४) शोधारिरसः (१) (भै. र. । शोथा. ) श्वेतद्वरसैर्भाव्यो हिङ्गुलोत्थो रसो बुधैः । तं रसं मूषिकायान्तु कृत्वा तस्योपरि क्षिपेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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