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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः १५३ यह रस बल्य, वृष्य, यौवनदाता और सर्व कर ( पानीके सा : करके ) १-१ रत्तीकी रोग नाशक है। इसे सेवन करने वाले कामी । गोलियां बना है । पुरुषोंकी लोसम्भोग-शक्ति शान्त नहीं होती। इनमेंसे १--' गोली प्रातःकाल तालमखानेके ___ इसके सेवन काल में घृतयुक्त पथ्याहार, रसके साथ खानेसे आठ प्रकारके ज्वर, कास, गोदुग्ध, मुद्गयूष और (मांसाहारियों के लिये) मांस श्वास, शोथ, दुस्साध्य प्लीहा, प्रमेह, अग्निमांद्य, रसके साथ खाना चाहिये। तथा इच्छानुसार शूल और संग्रहणीका नाश होता है । यह रस मिष्टान्न खाना चाहिये । कुछ दिनों तक शाक शोथको अवश्य नष्ट करता है। और अम्ल पदार्थीको छोड़कर इसी प्रकार पथ्य (७६७१) शोथभस्मलौहम् पालन करना चाहिये और फिर इच्छानुसार आहार ( भै. र. । शोथा.) करना चाहिये। त्रिकटु त्रिफला द्राक्षा पौष्करं सजलं शटी। (७६७०) शोथकालानलो रसः लौहं वचा लवश्व शृङ्गी त्वक्शतपुष्पिका ।। ( भै. र. । शोथा.) विभीतकं विडङ्गश्च धातकीपुष्पमेव च । चित्रं कुटजबोजश्च श्रेयसी सैन्धवं तथा। एतानि समभागानि क्ष्णचूर्णानि कारयेत् ॥ पिप्पली देवपुष्पश्च जातीफलसरङ्गणम् ॥ सर्वद्रव्यसमश्चात्र सुमृतं लौहकिकम् । लौहमभ्रं तथा गन्धं पारदे व मिश्रितम् । कुटजस्य रसेनापि म्रक्षयेत्परियत्नतः ॥ एतेषां कर्षमात्रेण वटी गुआमितां शुभाम् || वेष्टितं जम्बृपत्रेण पङ्केन परिलेपयेत् । भक्षयेत्यातरुत्थाय कोकिलाक्षरसेन तु । ततो लघुपुटे पक्त्वा स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् ॥ ज्वरमष्टविधं हन्ति साध्यासाध्यमथापि वा ॥ प्रातःकाले शुचिर्भूत्वा सेवितं गुञ्जकद्वयम् । कासं श्वास तथा शोथं प्लीहानं हन्ति दुस्तरम् निहन्ति सर्व शोथं ग्रहणीश्च विशेषतः ॥ मेहं मन्दानलं शूलं सङ्ग्रहग्रहणीं तथा ॥ उदरेषु च सर्वेषु शोथेषु च विधानतः । अवश्यं नाशयेच्छोथं कर्दमं भास्करो यथा। विविधा व्याधयश्चान्ये सेविता यान्ति साध्यताम् शोथकालानलो नाम रोगानीकविनाशनः ॥ सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, चीतामूल, इन्द्रजौ, गजपीपल, सेंधा नमक, द्राक्षा, पोखरमूल, सुगन्धबाला, कचूर, लोह भस्म, पीपल, लौंग, जायफल, सुहागेकी खील, लोहभस्म बच, लौंग, काकडासिंगी, दालचीनी, सौंफ, बहेड़ा, अभ्रक भस्म, शुद्ध गन्धक और शुद्ध पारद समान बायबिडंग और धायके फूल १-१ भाग तथा भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें मण्डूर भस्म सबके बराबर ले कर सबको एकत्र और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला- खरल करके कुड़ेकी छालके स्वरसमें घोट कर For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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