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१५२ भारत-भैषज्य-रलाकरः
[शकारादि मांसीतालीसमोचं गजकुसुमगदं शृङ्गाराभ्रेण कामी युवतिजनशता धातकी चेति तुल्यम् ।
भोगयोगादतुष्टः पथ्या धात्री विभीतं त्रिकटुरथ पृथक् वज्य शाकाम्ळमादौ दिनकतिचिदथ वर्धशाणं दिशाणम् ॥
स्वेच्छया भोज्यमन्यत ॥ एलाजातीफलाख्यं क्षितितलविधिना शुद्धगंधस्य कोलम् ।
क्रीडामोदप्रमुग्धः सपदि शुभवया
योगराज निषेव्य । कोलाधै पारदस्य प्रतिपदविहित पिष्टमेकत्र मिश्रम् ॥
गच्छेद्भूयोऽथ भूयः किमपरमधिकं
भेषजं नास्त्यतोऽन्यत् ॥ पानीयेनैव कार्याः परिणतचणकस्विनतुल्याच क्टयः।
कृष्णाभ्रक भस्म १० तोले तथा कपूर, प्रात: खागाच्चतस्रस्तदनु च कियत् जावित्री, सुगन्धबाला, गजपीपल, तेजपात, लौंग, शृङ्गवेरं सपर्णम् ॥ जटामांसी, तालीसपत्र, मोचरस, नागकेसर, कूठ
और धायके फूल ३||-३।माशे एवं हर, आमला, पानीयं पीतमन्ते ध्रुवमपहरति
बहेड़ा, सोंठ, मिर्च और पीपल १५-१५ रत्ती; क्षिप्रमेतान्विकारान् ।
इलायचीके बीज और जायफल ७॥-७॥ माशे; कोष्ठे दुष्टाग्निजातान् ज्वरमुदररुनो
शुद्ध गन्धक ७॥ माशे और पारा ३।। माशे लेकर राजयक्ष्म क्षयं च ॥
प्रथम पारे गन्धककी कन्जली बनावें और फिर कास श्वासं सशोथं नयनपरिभवं
उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर पानीके मेहमेदोविकारान् ।
साथ घोट कर उबले हुवे चनोंके बराबर गोलियां छदि शूलाम्लपित्तं गरगरलगदान
बना लें। पीनसं प्लीहरोगान ॥
मात्रा-४ गोली। हन्यादामाशयोत्थान् कफपवनकृतान्
पित्तरोगानशेषान् । इसे प्रातःकाल अद्रकके रस और पानके साथ बल्यो वृष्यश्च योगस्तरुणतरकरः
खा कर ऊपरसे थोड़ा पानी पीना चाहिये । सर्वरोगेषु शस्तः ॥
इसके सेवनसे अग्निमांद्य, ज्वर, उदररोग, रापथ्यं मासैश्च यूपैः घृतपरिललितैः
जयक्ष्मा, क्षय, कास, स्वास, शोथ, नेत्ररोग, प्रमेह, ___गव्यदुग्धैश्च भूयः। मेदो विकार, छर्दि, शूल, अम्लपित्त, विष, पीनस, भोज्यं मिष्टं यथेच्छ ललितललनया प्लीहा, आमाशयके रोग, कफ और वायुके रोग
दीयमानं मुदा यत् ॥ और पित्त रोग नष्ट होते हैं।
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