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भारत - भैषज्य - रत्नाकरः
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यदि इसे ६ मास तक रसायन विधिसे सेवन किया जाय तो बलि पलित रहित सौ वर्षकी सुखपूर्ण आयु प्राप्त होती है ।
(७६०७) शिलाजतुलेहः ( र. र. । प्रमेहा. )
शिलाजतु पलान्यष्टौ सितायाश्र पलाष्टकम् । बृहत्यास्तु फलं मूलं शृङ्गी घात्री कणा तुगा । पृथगेषां पञ्चातुर्जातस्य मिलितं पलम् । सञ्चूर्ण्य मिलितं कृत्वा निहन्ति मधुना लिहन् प्रमेहशुक्रदोषाश्वासकासक्षयाश्मरीम् । मूत्राघातानिमान्द्यामगुल्मप्लीहाग्निमारुतम् || जीर्णज्वरारुचि हरो लेह एष शिलाजतोः ।
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शिलाजीत ४० तोले, खांड ४० तोले तथा कटेलीके फल, कटेलीकी जड़, काकड़ासिंगी, आमला, पीपल और बंसलोचनका चूर्ण ५-५ तोले एवं दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेसरका चूर्ण १ - १ | तोला ले कर सबको एकत्र मिला कर रक्खें ।
इसे शहदके साथ सेवन करने से प्रमेह, शुकदोष, रक्तविकार, श्वास, कास, क्षय, अश्मरी, मूत्राघात, अग्निमांद्य, गुल्म, प्लीहा, वातविकार, जीर्णज्वर और अरुचिका नाश होता है ।
( मात्रा - २ - ३ माशा )
(७६०८) शिलाजतुवटिका ( भै. र.; स्त्रीरोगा . ) शुद्धमूर्त समं गन्धं रक्तोत्पलदलद्रवैः । कौटजेनाम्भसा चापि मर्दयेद्दिवसद्वयम् ॥
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[ शकारादि
शिलाजतुपलान्यष्टौ तावती सितशर्करा । त्वक्क्षीरी पिप्पली धात्री कर्कटाख्या पलोन्मिता ॥ निदिग्याफलमूलाभ्यां पलं युडयात्रिजातकम् । मधुन: पलसंयुक्तं कुर्यान्मासमान गुडान् ॥ दाडिमाम्बुपयः क्षीररसतोयसुरासवान् । तां भक्षयित्वा पिवेन्नरन्नो भुक्त एव वा ॥ पाण्डुकुष्ठज्वरप्लीहतमकार्शो भगन्दरान् । पूतिविण्मूत्र शुक्रादिदोषमेहमहोदर५ ॥ कातपित्तश्च प्रदरं रक्तसम्भवम् । तान् सर्वान् सुतरां हन्ति सर्वदोषहरा शिवा ।।
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शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक ५- ५ तोले लेकर कजली बनायें और उसे २-२ दिन लाल कमलके पत्तोंके रस और कुड़ेकी छालके क्वाथ में घोटकर सुखा लें। तदनन्तर उसमें ४० तोले शिलाजीत, ४० तोले सफेद खांड, तथा ५-५ तोले बंसलोचन, पोपल, आमला, काकड़ासिंगी, कटेलीकी जड़, कटेली के फल, दालचीनी, इलायची और तेजपातका चूर्ण मिला कर खरल करें और फिर ५ तोले शहद डाल कर घोट कर उड़दके समान गोलियां बना लें ।
( मात्रा -- १ माशा 1 ) अनुपान - अनारका रस, दूध, पानी, सुरा अथवा आसव |
इन गोलियों को खाली पेट अथवा भोजनान्तमें खाना चाहिये ।
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मांस रस,
इनके सेवन से पाण्डु, कुष्ठ, ज्वर, प्लीहा, तमक श्वास, अर्श, भगन्दर, शुक्रदोष, मेह, महोदर, कास, रक्तपित्त, और रक्तप्रदरका नाश होता है ।