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रसप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
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(७६०३) शिलाजतुयोगः (१२) शिलाजीत में (सोलहवां भाग) शुद्ध गन्धक, (र. का. घे. । क्षया.)
मनसिल और हरताल मिलाकर नीबूके रसमें घोट
कर शरावसंपुट में बन्द करके आठ अरने उपलोंमें फलत्रिक क्वाथ विशुद्धमादी
फूंक देनेसे उसकी भस्म हो जाती है। शुद्धं गुहच्या दशमूलशुद्धम् । स्थिरादिकाकोलियुगादिशुदं
शिलाजीत ज्वर, पाण्डु, शोथ, प्रमेह, अग्निशिलाजतु स्यात्क्षयिषु प्रशस्तम् ॥
| मांध, मेद, क्षय, शूल, गुल्म, प्लीहा, जठरशल, त्रिफला, गिलोय, दशमूल, लघु पंचमूल और हृच्छूल और समस्त त्वरोगनाशक तथा देहको काकोली तथा क्षीरकाकोलीके काथमें क्रमश: दृढ करनेवाला है। पृथक् पृथक् शुद्ध किया हुवा शिलाजीत सेवन
(७६०६) शिलाजतुरसायनम् करनेसे क्षयरोग नष्ट होता है।
( र. र. स.। पू. खं. अ.२) (७६०४) शिलाजतुयोग:(१३) (च. द. । प्रमेहा. ३४; धन्व.) | भस्मीभूतशिलोद्भवं समतुलं कान्तं च वैक्रा
न्तकं युक्तं शालसारादितोयेन पावितं यच्छिलाजतु ।। च त्रिफलाकटुत्रिकं घृतैर्वल्लेन तुल्यं भजेत् । पिबेत्तेनैव संशुद्धदेहः पिठं यथावलम् ॥ पाण्डौ यक्ष्मगदे तथाग्निसदने मेहेषु मूलामये
शालसारादि गणके क्वाथसे भावित शिला- गुल्मप्लीहमहोदरे बहुविधे शूले च योन्यामये।। जीत उसीके क्वाथके साथ, देहशुद्धिके पश्चात् / सेवेत यदि षण्मासं रसायनविधानतः । सेवन करनेसे प्रमेह नष्ट होता है। | वलीपलितनिर्मुक्तो जीवेद्वर्षशतं सुखी ॥ (७६०५) शिलाजतुमारणम्
शिलाजीतकी भस्म, कान्त लोह भस्म,
| वैक्रान्त भस्म, हर, बहेड़ा, आमला, सांठ, मिर्च (र. र. स. । पू. खं. अ. २)
तथा पीपल समान भाग ले कर सबको एकत्र शिलया गन्धतालाभ्यां मातुलारसेन च । मिलाकर खरल करें। पुटितं शिलाधातुम्रियतेऽष्टगिरीण्डकः ॥
मात्रा-३ रत्ती। नूनं सज्वरपाण्डुशोफशमनं मेहामिमान्यापह इसे घीके साथ सेवन करनेसे पाण्डु, यक्ष्मा, मेदच्छेदकरं च यक्ष्मशमनं शूलामयोन्मसनम्। अग्निमांद्य, प्रमेह, अर्थ, गुल्म, प्लीहा, महोदर, गुल्मप्लीहविनाशनं जठरहच्छलामयोन्मुलनं अनेक प्रकारका शूल और योनिरोगोंका नाश सर्वत्वग्गदनाशनं किमपरं देहे च लोहे हितम् ॥ होता है।
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