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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः ९२ ककारादीनि सर्वाणि द्विदलानि च वर्जयेत् । शङ्करेण समाख्यातो यक्षराजानुकम्पया || जगतामुपकाराय दुर्नामारिrयं धुत्रम् । स्थानाचलति मेरु पृथ्वी पर्येति वायुना ॥ पतन्ति चन्द्रताराश्च मिथ्या चेदहमब्रुवम् । ब्रह्मना कृतघ्नाश्च क्रूरा येऽसत्यवादिनः || वर्जनीयाः सधर्मेण भिषजा गुरुनिन्दकाः । मुनिरपिष्टविडङ्गं निरसलीढं चिरस्थितं धर्मे ॥ द्रावयति लोहदोषान्वह्निर्नवनीतपिण्डमिव । काले मलप्रवृत्तिर्लाघवमुदरे विशुद्धिरुद्वारे || अङ्गेषु नावसादो मनःप्रसादोऽस्य परिपाके | क्रिमिरिपुचूर्ण लीढं सहितं स्वर सेन वङ्गसेनस्य ॥ क्षपयत्यचिरान्नियतं लोहा जीर्णोद्भवं शूलम् । readerरस्तु दुग्धं पीत्वा तु तं जयेत् । गुञ्जाद्वादशकादूर्ध्वं दृद्धिरस्य भयप्रदा ॥ 99 एक बार मुनिराज नारदने लोकहित के विचार से श्री शंकर महादेवको प्रणाम करके प्रार्थना की “ हे भगवान ! कोई ऐसा उपाय बतलाइये कि जिससे शस्त्रक्रिया तथा क्षार और अनिके बिना ही अर्श रोग नष्ट हो सके । तत्र महाराज शंकरने उन्हें निम्नलिखित औषध बतलाई थी. मुण्ड और वज्रादि लोहभेदों में से किसी एक प्रकारका लोह ले कर यथा विधि शुद्ध करें और फिर उसके बारीक पत्र करा लें । तदनन्तर उसके बराबर मनसिल, सोनामक्खी और पारदकी कज्जलि बना कर उसमें पतूर (शालिञ्ज शाक या जल पीपल की जड़का कल्क मिलायें और उक्त लोह पत्रोंपर लेप कर दें एवं उन्हें बेरी आदिके Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ शकारादि कोयलकी तीव्रानिमें धमावें । यदि ज्वाला निकले तो त्रिफलाका रस छिड़क कर उसे शान्त कर देना चाहिये । इस प्रकार धमानेसे जब लोह पिघल जाय तो उसे त्रिफलेके स्वच्छ काथमें बुझा दें । तत्पश्चात् काथमेंसे बिना गले लोहको निकाल कर ( उस पर उपरोक्त औषधका लेप करके ) ऊपरकी विधिसे पकायें और त्रिफलाके काथमें बुझा दें। इसी प्रकार बार बार त्रिफलाकाथमें बुझानेसे लोहकी भस्म हो जायगी । अनेकबार त्रिफलाक्वाथमें बुझाने पर भी जो लोह कच्चा रह जाय उसे छोड़ देना चाहिये और शेष पक्क लोहको सुखा कर लोहे के खरल में डाल कर लोहेकी मूसलीसे धोटे अथवा पत्थरकी सिल पर पीस लें । अब इस लोहको त्रिफके काथमें घोट कर टिकिया बनावें और यथाविधि शरावसम्पटमें बन्द करके गजपुर में फूंक दें। इसी प्रकार अद्रक, भंगरा, काला भंगरा, मानकन्द, भिलावा, चीता, सूरण ( जिमीकन्द) हस्तिकर्णपलाश; इनके रस और थोहरके दूधमें घोट घोट कर प्रत्येककी पृथकू पृथक् पुट दें। इस प्रकार भस्म किया हुवा लोहा १६ पल (१ सेर) लें और १७ पल त्रिफलेको चार गुने पानी में पकावें तथा आठवां भाग शेष रहने पर छान कर उसमें यह भस्म और ८ पल (१ सेर) घी मिला कर लोह या ताम्रके पात्र में पकावें और लोहे की करछी से चलाते रहें। जब घी अलग हो करे ऊपर आ जाय तो कढ़ाईको नीचे उतारकर रख दें एवं शीतल हो जाने पर उसमेंसे लोहको निकाल कर सुरक्षित रक्खें । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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