SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् पञ्चमो भाग: अपने विश्वासके अनुसार मंगलकर्म करनेके | हो तो उसे पुराने मद्य युक्त आहारादिके साथ यह पश्चात् यह लोह एक रत्ती मात्रानुसार शहद और लोह सेवन कराना चाहिये। घीमें मिला कर सेवन करना प्रारम्भ करें और पथ्य--बैंगन, परवलका - फल, कटेलीका प्रतिदिन १-१ रत्ती मात्रा बढ़ाते जायं तथा | फल, चचीडा, शतावरके पत्तोंका शाक, बेतका इसके पश्चात् १-१ रत्ती घटानी शुरू करें। अग्र भाग, विधारा, चौलाईका शाक, बथुवा, इसे १२ रत्तीसे अधिक तो कभी देना ही न | धनियेका शाक, चीता, पंवाड़के पत्तोंका शाक, चाहिये और यदि रोगी इतनी मात्रा भी सहन | नारियल (खोपरा), खजूर, अनार, लवलीफल न कर सके तो उसकी शक्ति अनुसार कम मात्रामें (हरफारेवड़ी), सिंघाड़ा, पक्का आम, तालफल । देना चाहिये। __ अपथ्य-लकुच (बढल), छोटे बड़े बेर, जम्बोरी नीबू, बिजौरा, इमली, करौंदा, पेठा, अनुपान-गायका दूध, और इसके अभाव - ककोड़ा, विशेषतः सुपारी, कड़वा पटोल, कालमें बकरीका दूध । इसके सेवन कालमें स्निग्ध शाक ( नाडीका शाक ) कुन्टरू, ककड़ी, हरऔर वृष्य भोजन करना चाहिये । इसके सेवनसे प्रकारकी दाल । शीघ्र ही अग्नि दीप्त होती और भस्मक रोग नष्ट हो चाहे पर्वत अपने स्थानसे हिल जाएं, पृथ्वी जाता है । यह लोह वात पित्त, कुष्ठ, विषमज्वर, उलट जाय, एवं चन्द्र और तारागण गिर पड़ें गुल्म, नेत्ररोग, पाण्डुरोग, निद्रा (अधिक निद्रा) परन्तु यह लोह (अर्शमें) कभी निष्फल नहीं आलस्य, अरुचि, शूल, परिणाम शूल, प्रमेह, अप होता। बाहुक, शोथ, विशेषतः रक्तस्राव और अर्श तथा जो लोग ब्रह्म घातो, कृतघ्न, कूर, असत्यबलि पलितको नष्ट करता है। वक्ता और गुरु निन्दक हों उन्हें यह औषध न यह बल वर्द्धक, वृहण, कान्तिवर्द्धक, स्वर- देनी चाहिये । शोधक, शरीरको लघु करने वाला एवं आरोग्य, यदि. लोह सेवनसे कोई विकार उत्पन्न हो पुष्टि, आयु, रूप, बल और तेज वर्द्धक तथा । य रूप. बल और तेज वर्दक तथा जाय तो चायबिडंगके चूर्णको अगस्तिके रसमें घोट पुत्रोत्पादनकी शक्ति देने वाला है। कर उसे धूपमें गरम करके चाटना चाहिये । जिस | प्रकार अग्निसे जमा हुवा नवनीत पिघल जाता है ___ इसके सेवनसे अर्श इस प्रकार नष्ट हो जाती | उसी प्रकार इससे समस्त लोहविकार नष्ट हो है जिस प्रकार अग्निसे रुईका ढेर । इसके जाते हैं। अर्शनाशक गुणकी परीक्षा सहस्रों बार हो यदि समय पर मल प्रवृत्ति हो, पेट हल्का चुकी है। हो, और डकार शुद्ध आवे तो समझना चाहिये कि यदि रोगी सुकुमार, निर्बल और मद्य सेवी लोहका ठीक ठीक पाचन हुवा है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy