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नस्यपकरणम् ]
परमो माग:
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(७५१७) शिरीषपुष्पनस्यम्
(७५२०) शिरीषादियोगः (रा. मा. ( विषा. २८)
(यो. र. । शिरोरागा.; वृ. मा. । शिरो.) शिरीषपुष्पैः कुलिशद्रुमस्य
शिरीषमूलकफलैत्वपीडं प्रयोजयेत् । सोरेणपिष्ट कृतनावनानाम् ।
अवपीडो हितो वा स्याद्वचापिपलिभिः कृतः ॥ विषं विनाशं नयति क्षणेन
सिरसके फूल, मूली और मैनफलको पीसकर ___ मण्डूकदंशप्रभवं नराणाम् ॥ | कपड़ेसे निचोड़कर रस निकालें ।
सिरसके फूलोंको थूहर (सेंड) के दूधमें घोट यह रस नाकमें टपकानेसे अर्धावभेदक (आधा कर उसकी नस्य देनेसे मण्डूक (मेंढक) का विष सीसी) का नाश होता है । तुरन्त नष्ट हो जाता है।
बच और पीपलको पानीके साथ पीसकर (७५१८) शिरीषपुष्पादिनस्यम्। | कपड़ेसे निचोड़कर रस निकालें । (व. से. । ज्वरा.)
इसकी नस्य लेनेसे भी आधासीसी नष्ट हो कल्कः शिरीषपुष्पस्य रजनीद्वयसेयतः। जाती है। नस्यं सर्पिः समायोगाज्वरं चातुर्थिक जयेत् ।। (७५२१) शिरोर्तिहररसः (नस्यम्) ___ सिरसके फूलोंके कल्कमें हल्दी और दारुहल्दी
(र. चं. । ज्वरा.) का चूर्ण मिलाकर उसे धीमें मिलाकर नस्य लेनेसे शुण्ठीमरिचपिप्पल्याष्टकद्वयमितं पृथक् । चातुर्थिक ज्वर नष्ट होता है।
विषं टङ्कमितं चैव षटङ्क भस्म कल्पयेत् ॥ (७५१९) शिरीषादिनस्यम् पिप्पलस्य त्वचः खल्वे दृढं सर्व विमर्दयेत् ।
गुञ्जामात्रेण नस्येन शिरोति नाशयेत्क्षणात् ॥ (ग. नि. । ज्वरा. १)
सोंठ, कालीमिर्च और पीपल २-२ भाग, शिरीषनिम्बपत्राणि हि सर्पस्य कञ्चुकी।
शुद्ध बछनाग १ भाग और पीपल वृक्षकी छालकी समांशचूर्णमेतेषां वारिपिष्टं हि नस्यतः ॥
राख ६ भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें । ग्रहभूतपिशाचानां शाकिनीराक्षसामपि।।
इसमेंसे १ रत्ती औषध सूचनेसे शिरपीड़ा दोष हन्ति ज्वरं तीब्र तरणिस्तिमिरं यथा ॥
तुरन्त नष्ट होती है। ___ सिरसके पत्ते, नीमके पत्ते, हॉग और सांपकी कांचली बराबर बराबर लेकर चूर्ण बनावें । इसे
(७५२२) शुष्कगोमयादियोगः पानीमें पीसकर नस्य लेनेसे ग्रह, भूत, पिशाच,
(वै. म. र. । पटल २) शाकिनी और राक्षसोंके उपद्रव नष्ट होते हैं तथा तत्क्षणं क्षुण्णमाघातं शुष्कगोमयमस्यति । तीन ज्वर उतर जाता है।
नासानुतमसक्स्रावं चन्दनस्योत्पलस्य वा ॥ ૧૨
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