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अमनप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
(७५०८) शिलाञ्जनम्
सीसेको पिघला पिधला कर त्रिफलाके काथ, (यो. र. । नेत्र रोगा.)
भंगरेके रेस, सेठिके काथ, शहद, घी, बकरीके दूध
और गोमूत्र में सात सात बार बुझावें और फिर शिलासैन्धक्कासीसशकच्योषरसाजनैः। सक्षौद्रैः काचशुक्रामतिमिरघ्नी रसक्रिया ॥
उसकी सलाई बनवा लें। मनसिल, सेंधा नमक, कसीस, शंख, सांठ,
इसे प्रातः सायं आंखमें फेरनेसे नेत्रज्योति मिर्च, पीपल और रसौत समान भाग ले कर सबका
बढ़ती है । बारीक चूर्ण करके शहदमें मिला लें।
(७५११) शुक्लारिषतिः इसका अंजन लगानेसे काच, शुक्र, अर्म और (र. र. स. । उ. अ. २३) तिमिरका नाश होता है।
शम्बूकं पारदं नागं कांस्यचूण रसामनम् । (७५०९) शिवावतिः समं सर्वमिदं चिश्चादलद्रावेण मर्दयेत् ॥ (ग. नि. । अजीर्णा. ६)
ताम्रपात्रगतां वर्ति छायाशुष्क तु कारयेत् ।
शुक्लाम तिमिरं पिल्लं हन्ति सा मधुनाजिता॥ भल्लातकं त्रिकटुकं भृतीक क्षवको वचा । फणिज्जो लशुनं कुष्ठं करमस्य फलानि च ॥
शंख भस्म, पारद, सीसा, कांसीका चूर्ण वर्तिमेभिः शिवां नाम वस्तमूत्रेण पेषयेत् ।
| और रसौत समान भाग ले कर प्रथम पारेमें
सीसेको मिला कर घोटें और दोनोंके एक जीव विधूच्यामञ्जनमिदं सघो वेगं नियच्छति ॥
हो जाने पर उसमें कांसेका चूर्ण मिला कर घोटें; शुद्ध भिलावा, सेठ, मिर्च, पीपल, अजवा- जब वह भी मिल जाय तो अन्य औषधेांका चूर्ण यन, नकछिकनी, वच, बन तुलसीके पत्र, ल्हसन, मिला कर सबको ताम्रके खरलमें इमलीके पत्तोंके कूठ और करके फल समान भाग ले कर सबको रसमें घोटें और बत्तियां बना कर छायामें बकरेके मूत्रमें पीस कर वर्तियां बनावें।
सुखा लें। इनका अञ्जन लगानेसे विसूचिकाका धेग |
इन्हें शहदमें घिस कर आंखमें लगानेसे शीघ्रही शान्त हो जाता है।
शुक्ल (फूला), अर्म, तिमिर और पिल्लका नाश (७५१०) शीशशलाकाऽञ्जनम् | होता है।
(वृ. मा. । नेत्र. ; व. से.) ___(७५१२) श्रीपाद्यञ्जनम् त्रिफलाभृङ्गमहौषधमध्वाज्यच्छागपयसि
( यो. र. । नेत्र.) ____ गोमूत्रे । श्रीपर्णी पाटला धात्री धातकी तिल्वकार्जुनात् । नागं सप्तनिषिक्तं करोति गरुडोपमं चक्षुः॥ । पुष्पाण्यथ बृहत्याश्च बिम्बीलोधं च तुल्यशः॥
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