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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[शकारादि
____ खपरिया, शंख नाभि, गूगल और नीलाथोथा सिरसके वीज, काली मिर्च, पीपल और समान भाग ले कर अत्यन्त बारीक पीसें और उसे सेंधा नमक; इनके बारीक चूर्णको एकत्र मिलाकर नीबूके रसमें घोट कर बत्तियां बना लें। | अंजन बनावें। __इन्हें आंखोमें आंजनेसे तिमिर, फूला, इससे अथवा केवल सेंधा नमकके चूर्णसे आंखोकी खाज, पानी बहना, अर्म और पिल्ल
पिल्ल आंखके फूलेको घिसना चाहिये। नानक नेत्र रोगोंका नाश होता है। (७५०३) शालिपादियोगः
(७५०६) शिरीषाद्यञ्जनम् (व. से. । नेत्र रोगा.)
(ग. नि. । ज्वरा. १ ; व. से. । बरा. ; वृ. ताम्रपाने गुहामृलं सिन्धूत्थं मरिचान्वितम् । यो. त. । त, ५९; भै. र. ) आरनालेन सङ्घष्टमञ्जनं पिल्लनाशनम् ॥
शिरीपबीजगोमूत्रकृष्णामरिचसैन्धवैः।। शा. पूर्णीकी जड, सेंधा नमक और मरिच;
अञ्जनं स्यात्मबोधाय सरसोनशिलावचैः ॥ इनके समान भाग मिश्रित बारीक चूर्णको ताम्र
सिरसके बीज, पीपल, कालीमिर्च, सेंधानमक, पात्रमें आरनालके साथ खरल करके अंजन लगानेसे पिल्लरोग नष्ट होता है।
मनसिल और बचका बारीक चूर्ण तथा ल्हसन
समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर गोमूत्र में ___ (७५०४) शिग्रुपत्रयोगः
खरल करके अंजन बनावें । (ग. नि. । नेत्र. ३ ; व. से. । नेत्ररोगा.) वातपित्तकफसन्निपातजा
इसे लगानेसे सन्निपातकी मूछो नष्ट हो नेत्रयोर्बहुविधापपि व्यथाम् ।
जाती है। शीघ्रमेव जयति प्रयोजितः
(७५०७) शिरीषाद्य नावनाञ्जनम् शिग्रपल्लवरसः समाक्षिकः ॥
सहंजनेके पत्तोंके रसमें शहद मिला कर । ( ग. नि. । उन्मादा. २ , यो. र. । उन्मादा.) आंखमें आंजनेसे वातज, पित्तज, कफज और शिरीषो मधुकं हिङ्ग लशुनं नागरं वचा। . सन्निपातज अनेक प्रकारकी नेत्र पीड़ा शीघही नष्ट कुष्ठं च बस्तमूत्रेण पिष्टं स्यानावनाअनम् ॥ हो जाती है।
सिरसके बीज, मुलैठी, हींग, ल्हसन, सांठ, (७५०५) शिरीषबीजायञ्जनम् ।
___बच और कूठ समान भाग ले कर सबको बकरके (वृ. मा. । नेत्र रोगा. ; व. से. ; ग. नि. । नेत्र. ३)
मूत्रमें घोट कर अंजन बनावें । शिरीषबीजमरिचपिप्पलीसैन्धवैरपि । इसकी नस्य देने तथा इसीका अनन शुक्रस्य घर्षणं कार्यमथवा सैन्धवेन च ॥ | लगानेसे उन्माद रोग नष्ट होता है।
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