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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वृद्धि घृत-प्रकरणम् लेप-प्रकरणम् ५२६१ मांस्यादि घृतम् अन्त्रवृद्धि, वातवृद्धि, ५८१० यवादि लेपः अण्डवृद्धि मेदो वृद्धि, मूत्र वृद्धि, ६३०४ लाक्षादि ,, अन्वृद्धि, शोथ पित्तवृद्धि ६७६१ वृहद्दन्ती घृतम् अन्त्र वृद्धि, वृषण वृद्धि - रस-प्रकरणम् अन्त्ररोध, दारुण अ- ! ५५९० महोदधि रसः अन्त्रावरोध, अन्त्रवृद्धि न्त्र दाह आदि ७००५ वातारि रसः अन्त्रवृद्धि तैल-प्रकरणम् ७१०० वृद्धिनाशनरसः ,,, ६८२६ बृहन्मदार तैलम् अन्त्र वृद्धि, (बल शुक्र. ७१०१ वृद्धिवाधिकावटी असाध्य अन्त्रवृद्धि भी वर्द्धक) शीघ्र नष्ट हो जाती है। (५२) व्रणाधिकारः कपाय-प्रकरणम् ६४६४ वंशत्वगादिकाथः कोष्ठस्थ रक्तस्रावक ५३७२ महागौर्याचं धृ० शिरोव्रण, आगन्तुक व्रण, विषमनाड़ीत्रण आदि गुटिका-प्रकरणम् ६६७३ विडङ्गादिवटिका व्रणमें उपयोगी ५७९५ यष्टयादिघृतम् ताज़े घावको अत्यन्त शीघ्र भर देता है। ६२७५ लाङ्गली , अग्निदग्ध व्रण, कीटदंश जनित व्रण, मर्माश्रितव्रण, पुराना दुष्ट नाड़ीव्रण गुग्गुलु-प्रकरणम् ६६९० विडङ्गादिवटिका- दुष्टव्रण, अपची नाडी व्रण घृत-प्रकरणम् ५२१२ मञ्जिष्ठाद्यं धृतम् अग्निदग्ध व्रण ५३५३ मधुच्छिष्टाय ,, , , तैल-प्रकरणम् ५२९२ महाकषायतैलम् पुराने घावको शीघ्र भर देता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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