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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वृद्धि घृत-प्रकरणम्
लेप-प्रकरणम् ५२६१ मांस्यादि घृतम् अन्त्रवृद्धि, वातवृद्धि, ५८१० यवादि लेपः अण्डवृद्धि
मेदो वृद्धि, मूत्र वृद्धि, ६३०४ लाक्षादि ,, अन्वृद्धि, शोथ
पित्तवृद्धि ६७६१ वृहद्दन्ती घृतम् अन्त्र वृद्धि, वृषण वृद्धि
- रस-प्रकरणम् अन्त्ररोध, दारुण अ- ! ५५९० महोदधि रसः अन्त्रावरोध, अन्त्रवृद्धि न्त्र दाह
आदि
७००५ वातारि रसः अन्त्रवृद्धि तैल-प्रकरणम्
७१०० वृद्धिनाशनरसः ,,, ६८२६ बृहन्मदार तैलम् अन्त्र वृद्धि, (बल शुक्र. ७१०१ वृद्धिवाधिकावटी असाध्य अन्त्रवृद्धि भी वर्द्धक)
शीघ्र नष्ट हो जाती है।
(५२) व्रणाधिकारः
कपाय-प्रकरणम् ६४६४ वंशत्वगादिकाथः कोष्ठस्थ रक्तस्रावक
५३७२ महागौर्याचं धृ० शिरोव्रण, आगन्तुक
व्रण, विषमनाड़ीत्रण आदि
गुटिका-प्रकरणम् ६६७३ विडङ्गादिवटिका व्रणमें उपयोगी
५७९५ यष्टयादिघृतम् ताज़े घावको अत्यन्त
शीघ्र भर देता है। ६२७५ लाङ्गली , अग्निदग्ध व्रण, कीटदंश
जनित व्रण, मर्माश्रितव्रण, पुराना दुष्ट नाड़ीव्रण
गुग्गुलु-प्रकरणम् ६६९० विडङ्गादिवटिका- दुष्टव्रण, अपची नाडी
व्रण
घृत-प्रकरणम् ५२१२ मञ्जिष्ठाद्यं धृतम् अग्निदग्ध व्रण ५३५३ मधुच्छिष्टाय ,, , ,
तैल-प्रकरणम् ५२९२ महाकषायतैलम् पुराने घावको शीघ्र
भर देता है।
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