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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रण]] चतुर्थों भागः ५३२४ मेषरोममषी तै० पुरानेसे पुराना नाडीव्रण | ६३०७ लाङ्गलीकन्दलेपः नष्टशल्यको निकालता है ६२८२ लजालुमूल ,, पाक रहित शस्त्राघातको ६८५१ वसुकादि लेपः दुष्ट ब्रण शीघ्र भर देता है। ६८६६ व्रणहरो लेपः नाड़ीत्रण, दुष्टत्रण (शो ६२९२ लिकुचादितैलम् व्रणशोधक, रोपण । धन, रोपण) ६७९९ विपरीतमल्ल ,, शस्त्राघात, फोड़े, उप-६८६७ ,, , बगनाशक ६८६८, समस्त प्रकारके व्रण चिका भगंदर ६८३२ व्रणराक्षस , नाडीव्रण, खुजली, वि धूप-प्रकरणम् स्फोटक, ब्रण .५४२७ मनःशिलादिधूपः दुर्गन्धित पीपयुक्त वण, ६८३३ ,, ,, समस्त व्रण, पामा, कण्डू, विचर्चिका ५८१८ यवादि धूपः वातजवणकी तीव्र वेदना और स्राव लेप-प्रकरणम् ५३५९ मनःशिलादिलेपः सवर्णकारक ५३८३ मातुलुङ्गादिलेपः वातज व्रणशोथ रस-प्रकरणम् ५८०७ यवभस्मादिलेपः अग्निदग्ध वणको शीघ्र ६०३४ रक्तारि रसः व्रण, नाडीव्रण, अभिघानष्ट करता है। तसे होनेवाला रक्तस्राव ५८०८ यवादि लेपः व्रणको फोडता है। ७१४६ व्रणरोपणरसः व्रण, गण्डमाला, भगन्दर ५८१२ , , व्रणकी दाह, पीड़ा ७१४७ , हर , समस्त प्रकारके व्रण ५८१३ यष्टयादिलेपः रोपण ५९८० रसाञ्जनादिकल्कः नाडीव्रण मिश्र-प्रकरणम् ६३०२ लशुनादि लेपः वगके कृमि । ६४५३ लालादि योगः नवीन वण, कुष्ठ - - (५३) शिरोरोगाधिकारः - कषाय-प्रकरणम् घृत-प्रकरणम् ५०३६ मुण्डितिकायोगः अविभेदक, सूर्यावर्त ५७९३ यष्टयादिधृतम् पित्तज शिरोरोग ५८६४ रास्नादशमूलकाथः , शिरशल, ज्वरादि ६२७४ लाक्षारसादि , भ्रशूल,शंखशूल,सूर्यावर्त For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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