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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [क्षय, राजयक्ष्मा - ५६३६ ६७०६ वासावलेहः क्षय, स्वरभंग, अफारा, क्षय, कफ, दाह, (बृहद) मूत्रकृच्छ अरुचि, कृशता ५६३२ , , क्षय घृतप्रकरणम् ५६३३ मृगाङ्क रसः क्षय ५२१३ मधुकादिघृतम् क्षत क्षीणता ५६३५ , , क्षय, अग्निमांद्य, सं. ५९४२ रास्नादि घृतम् शोष ग्रहणी ६७४२ वासाद्यं घृतम् शोष राजयक्ष्मा ५६३७ बहुरूप यक्ष्मा, अग्निआसवारिष्ट-प्रकरणम् मांध, स्वरभेद, अरुचि, ३८३८ वृहन्मूलासवः राजयक्ष्मा, श्वास, वमन, मूर्छा, पित्त. प्लीहा (अग्निदीपक) ५६३८ , , राजयक्ष्मा ५६३९ , , , " तैल-प्रकरणम् ५८२७ यक्ष्मकेसरीरसः क्षय ६२७६ लक्ष्मीविलासतैलम् क्षयादि अनेक रोग ५८२८ यक्ष्म हरो , राजयक्ष्मा ५८२९ यक्ष्मान्तकलौह स्वरभङ्ग, सर्व उपद्रव युक्त और वैद्योंसे त्यक्त रस-प्रकरणम् क्षय (बलवर्द्धक) ५५०७ मध्वादि लेहः भयङ्कर राजयक्ष्मा ५८३० यक्ष्मारि लौहम् तीब क्षय ५५२८ महा कनक सि- राजयक्ष्मा, श्वास, | ६०३२ रक्तवर्णहेमगर्भरसः राजयक्ष्मा न्दूर रसः कास, शोथ, अग्निमांद्य, ६०३७ रजतादि लौहम् क्षय, पित्त विकार अरुचि, छर्दि आदि ६०४१ रत्नगर्भपोटलीरसः हरप्रकारका राजयक्ष्मा (राजयक्ष्माकी परमौषध) ६१२२ रसेन्द्र गुटिका सम्पूर्ण लक्षणयुक्त ५५६० महामृत्युञ्जयरसः क्षय, कास, अम्लपित्त, क्षय, रक्तपित्त, अरुचि क्षय, श्वास, रक्तपित्त, बर्द्धक) अरुचि, कृशता (शरी५५७८ महावीर रसः क्षय, अतिसार, अग्नि रको पुष्ट करता है) मांद्य. ६१३१ राजमृगाकरसः राज यदमा ५५८६ महाहेमगर्भरसः राजयक्ष्मादि अनेक रोग | ६१३२ , , , हर प्रकारका क्षय ५५९९ माणिक्य रसः राजयक्ष्माको शीघ्र नष्ट ६१३३ , , , क्षय नाशक, अत्यन्त करता है। बल वर्द्धक स्वरभंग (अत्यन्त बल ६१२३ " " For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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