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कृमिरोग]
चतुर्थों भागः
८४५
लेप-प्रकरणम् ५९८८ रसादि लेपः जू (यूका)
चूर्ण-प्रकरणम् ६५८३ वचादि चूर्णम् उदरकृमि मरकर
निकल जाते हैं। ६६१० विडङ्गादिचूर्णम् कृमिरोग ६६१६ " " ""
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धूप-प्रकरणम् ५४२९ मशकहर धूपः डांस, खटमल, मच्छर,
गुटिका-प्रकरणम्
रस-प्रकरणम् ६२५३ लाक्षादि वटी डांस, मच्छर आदि
| ५६१८ मुस्ताचं चूर्णम् कृमि कीटनाशक ७०३० विडङ्गलौहम् उदरकृमि, अरुचि,
__ अग्निमांद्य, ज्वर, शोथ तैल-प्रकरणम् ६७९३ विडङ्ग तैलम् यूका, लिक्षा
मिश्र-प्रकरणम्. ६७९७ विडङ्गाचं तैलम् शिरोगत कृमि । ७१६३ विडङ्गादि योगः कृमिनाशक, अग्नि दीपक
- *(१८) क्षय राजयक्ष्माधिकारः
कषाय-प्रकरणम्
५७७१ यष्ट्यादि चूर्णम् राजयक्ष्माजनित कृशता ६२०६ लाक्षाकूष्माण्ड रक्तक्षय
५९१६ रास्नाद्यं ,, राजयक्ष्मा, श्वोस, कास कल्कः
६२२१ लवङ्गाय , क्षय, अरुचि, उरोग्रह,
गलग्रह, हिक्का, अतिचूर्ण-प्रकरणम्
सार, कास आदि. ५१२१ महातालीसादि क्षय, पीनस, ज्वर, - ६२२७ , , क्षय, अरुचि, कास चूर्णम् स्वरभंगादि
(मुखशोधक) ५७५५ यवादि चूर्णम्
क्षय ६६६० व्योषादि , क्षयको नष्ट कर शरीरको अति शीघ्र हृष्ट
अवलेह-प्रकरणम् पुष्ट और बलवान बना ५१९० मधुपक हरीतकी क्षय, कास, वमन, तृषा देता है।
हिचकी आदि
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