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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८३२ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [अर्श : मांद्य ६२७७ लघुकासीसाद्यं अर्शके मस्से ५४७७ मण्डर योगः अर्शके मस्सों पर दघृत. बाव पड़नेसे होने वाला ६७६८. व्योषायं घृतम् अर्शके मस्सोंको नष्ट रक्तस्राव शीघ्र बन्द करता है। हो जाता हैं। ५५५३ महा पर्पटी रसः अर्श, गुदपीडा, आग्नतैल-प्रकरणम् ६७७८ वज्रकं तैलम् अर्श तथा गण्डमालामें-- ५५९६ माणशूरणाद्य अश अत्युपयोगी है। ५६२७ मूलकुठार रसः अर्श, अग्निमांद्य ६८१८ वृहत्कासीसाधं मस्सेको गिरा देता है। -- ६०५९ रस गुटिका अर्श तैलम ७०४५ विद्याधर लोहम् सोपद्रव अर्श ७१२७ वैक्रान्ताख्य रसा- हर प्रकारका अर्श आसवारिष्ट-प्रकरणम् यनम् ६२९७ लवङ्गासवः अश, शोथ, अरुचि, .: ज्वर, पाण्ड मिश्र-प्रकरणम् ६१७३ रजनीचूर्ण योगः मस्सोंको काटने वालो धूप-प्रकरणम् डोरा ६००२ रालादि. धूपः .... अर्शका रक्तस्राव | ६१८९ रास्नायुपनाहः वेदनाको शमन और मस्सोंको नष्ट करने रस-प्रकरणम् वाली पुल्टिस ३४३६ लोहादि मोदकः ..अर्श ७१५७ वार्ताक योगः मस्सोंको नष्ट करता है। (८) अश्मरिशर्कराधिकारः कषाय-प्रकरणम् ६४९० वरुणादि कषायः-अमरि, शर्करा ५०३२ मालतीमूल यागः अश्मरी, मूत्र रोकनेसे ६४९१ , पुरानी वातज अश्मरि ___ उत्पन्न पीड़ा ६४९२ ,, , अश्मरि पातक, बस्ति ५७४१ यूथीमूल ,, अश्मरि, शर्करा, सशूल मूत्रकृच्छ । ६४९४ , क्वाथः अश्मरीपातक शल नाशक For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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