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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि और शुद्ध कृष्णाभ्रक प्रत्येक २२॥ माशे लेकर काकोली और दोनों प्रकारकी सारिवा प्रत्येक १।सवको एकत्र पीस लें १। तोला लेकर सबको एकत्र कूट लें। विधि-२ सेर घीमें उपरोक्त काथ, २ सेर २ सेर घीमें बकरीका दूध २ सेर ५३ तोले, शतावरका रस और २ सेर गायको दूध तथा चावलोंका पानी २ सेर ५३ तोले, दूबका रस कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश २ सेर ५३ तोले और उपरोक्त कल्क मिलाकर जल जाय तो घृतको छान लें। मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश जल जाए तो यह घृत २० प्रकारके प्रमेह, १३ प्रकारके घृतको छान लें। मूत्राधात, पथरी, मूत्रकृच्छ, तथा वातज, पित्तज, इसकी नस्य लेने से नाकसे होने वाला रक्तकफज और सान्निपातिक भयंकर रक्तपित को नष्ट स्राव नष्ट होता है । इसे पीनेसे रक्तवमन बन्द होती है। यदि कानोंसे रक्त निकलता हो तो करता और वीर्यको बढ़ाता है। कानोंमें यह तेल डालना चाहिये । यदि बवासीरके (५२३९) महादूर्वाद्यवृतम् मस्सोंसे अथवा लिंग और गुदासे रक्तस्राव होता हो ( व. से. । रक्तपित्ता.) तो उन स्थानोंमें इसकी मालिश करनी चाहिए । दुर्वासेन्दीवरं पद्म मनिष्ठा सैलवालुका । यह साधारणतः समस्त पित्त विकारों और रास्ना मुस्ता तथोशीरं चन्दनं मधुकायम् ॥ विस्फोटकादि में तथा विशेषतः कृमिदोय और पद्म लोध्रकुष्ठश्च चन्दनं रजनीद्वयम् । विसर्पमें अत्यन्त गुणकारी है । काकोल्यौ शारिये चेति कल्कैरेभिश्च कार्षिकैः॥ (५२४०) महानीलघृतम् (१) घृतप्रस्थमजाक्षीरं तंडुलोदकसंयुतम् । (सु. सं. । चि. अ. ९.) । दुर्वायाः स्वरसेनापि साधितं मृदुनामिना ॥ त्रिफलात्वत्रिकटुकासुरसामदयन्तिका । तत्पानं वमतो रक्तं नावनं नासिकागते । वायस्यारग्वधानाञ्च तुलां कुर्यात् पृथक् पृथक्।। कर्णाभ्यां यस्यगच्छेच तस्य कौँ प्रपूरयेत् ॥ काकमाच्यर्कवरुणदन्तीकुटजचित्रकान् । रक्तस्रावीणि चाशीसि लेपयेत्तेन सर्पिषा। दार्वी निदिग्धिकाभ्यान्तु पृथग्दशपलन्तथा ।। मेदपायुप्रवृत्ते तु तदभ्यङ्गे प्रयोजयेत् ॥ विद्रोणेऽपां पद्यावत् षट्प्रस्थं परिशेषितम् । पित्तजेषु विकारेषु स्फोटादिषु च बुद्धिमान् । शकुद्रसदधिक्षीरमूत्राणां पृथगाढकम् ।। विषेषु कीटदोषेषु विसर्पेषु प्रयोजयेत् ॥ तद्वद्धृतस्य तत्साध्यं भूनिभ्वव्योपचित्रकैः । कल्क-दूर्वा ( दूबड़ा घास ), नीलकमल, करअफलनीलिकाश्यामावल्गुजपीलभिः ॥ लालकमल, मजीठ, एलवालुक, रास्ना, नागरमोथा, नीलिनीनिम्बकुसुमैः सिद्धं कुष्ठापहं घृतम् । खस, सफेद चन्दन, मुलैठी, पद्याख, लोध, कूठ, म्रक्षणादङ्गसावये वित्रिणां जयेन्नृणाम् ॥ लाल चन्दन, हल्दी, दारुहल्दी, काकोली, क्षीर- भगन्दरं कृमीनी महानीलं नियच्छति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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