SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ७९ हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल, दधि सपिंश्च दुग्धं च गोमूत्रं च शकुद्रसम् । दालचीनी, तुलसी, मदयन्तिका (चमेली), सफेद एकैकमाढकं दद्यात्प्रत्येकं वस्त्रगालितम् ॥ चौंटली और अमलतास । प्रत्येक ६। सर । मकोय, अवलगुजं त्रिकटुकं नक्तमालफलानि च । आक, बरनेकी छाल, दन्तीमूल, कुडेकी छोल, त्रिफला चित्रको दन्ती मुस्तं कटुकरोहिणी॥ चीता, दारुहल्दी तथा कटेली ५०-५० तोले । पिचुमन्दश्च शिग्रुश्च तथेङ्गुदिफलानि च । सबको कूटकर ९६ सेर पानीमें पकावें जब १२ किराततिक्तकं श्यामा नीलिनी नीलमुत्पलम् ।। सेर पानी शेष रह जाय तो छानलें। कल्कैरेतेधृतं सिद्धं पाययेच्छ्वित्ररोगिणम् । ८ सेर घीमें उपरोक्त क्वाथ, ८ सेर गायके महानीलमिति ख्यातमेतच्छ्वित्रापरं परम् ॥ गोबरका रस, ८ सेर गायका दही, ८ संर गोदुग्ध भगंदरं तथाऽीसि कुष्ठान्यष्टादशैव तु । और ८ सेर गोमूत्र तथा निम्नलिखित कल्क अथर्वविहितो योगो ब्रह्मदण्ड इवाऽऽहितः ॥ मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । जब जलांश जल वित्रिणां श्वित्ररोगेषु पानाभ्यञ्जनतः स्मृतः॥ जाए तो घृतको छान लें। ____ अमलतास, सफेद चौंटली, तुलसी और कल्क-करनवेकी गिरी (करञ्जफल), सम्भालु, मदयन्तिका (चमेली भेद), प्रत्येक ६। सेर तथा काली निसोत, बावची, पीलु, नीलवृक्षका पञ्चांग हर, बहेड़ा और आमला ४-४ सेर; एवं दन्ती, और नीमके फूल । प्रत्येक ११॥ ताले लेकर दारुहल्दी, कुड़ेकी छाल, बरनेकी छाल, चीतेकी जड़, सबको एकत्र पीस लें। आककी जड़ मकोय और कटेली प्रत्येक ५०-५० यह घृत कुष्ट, भगन्दर और कृमि तथा तोले लेकर सबको अधकुटा करके १२८ सेर पानीमें अर्शको नष्ट करता है इसकी मालिश करनेसे श्वेत पकावें । जब १६ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें कुष्ठके चकतोंका रंग शरीरके रंगके समान हो और फिर उसमें ८-८ सेर दही, घी, दूध, गोमूत्र जाता है। और गोवरका रस ( हर एक चीज कपड़ेमें छनी हुई ) तथा निम्नलिखित कल्क मिलाकर पुनः (५२४१) महानीलघृतम् (२) पकावें। जब जलांश जल जाय तो घृतको छान लें। (वृ. यो. त. । त. १२०; वं. से. । कुष्ठा.) कल्क-बाबची, सोंठ, मिर्च, पीपल, करञ्जके आरग्वधं वायपी च सुरसा मदयन्तिका । | फल, हर्र, बहेड़ा, आमला, चीता, दन्तीमूल, नागएकैकस्य तुलाऽऽदेया त्रैफलं चाऽऽढकत्रयम् ॥ रमोथा, कुटकी, नीमकी छाल, सहजनेकी छाल, दन्ती दारुहरिद्रा च कुटजं वरुणत्वचः। हिङ्गोटके फल, चिरायता, निसोत, नीलका पञ्चाङ्ग, चित्रकथा मूलं च काकमाची निदिग्धिका ॥ और नीलोत्पल ( नीलकमल )। सब समान भाग एषां दशपलान्भागांश्चतुणेऽम्भसः पचेत्।। मिश्रित १ सेर (प्रत्येक ४ तोले २।। माशे) लेकर अष्टभागावशिष्टं तु पूतं पुनरधिश्रयेत् ॥ । सबको एकत्र पीस लें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy