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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि .
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गोक्षुरेक्षुरबीजानि लवङ्ग मरिचं कणा। अवश्य नष्ट हो जाती है एवं नपुंसक पुरुष भी शृङ्गाटकं कर्षमितं कुर्यादेवं पृथक् पृथक् ॥ | अनेक स्त्रियों से रमण करने और सन्तानोत्पादनमें सूक्ष्मचूर्ण विधायाथ पूर्वषिष्टे निधापयेत् । समर्थ हो जाता है। वटकान् कारयेत्पश्चात् कर्षमात्रान् विपाचयेत् ॥
यह प्रयोग अनुभूत है। घृतप्रस्थत्रयेणैव सुतलय्य निमज्जयेत् ।
(७१५६) वाराहीकन्दयोगः माक्षिके घृतमाने वै मुखं रुन्ध्यादिनत्रयम् ॥ । मध्वाज्यमिश्रितं भक्षेदेकैकं वटकं प्रगे।।
(ग. नि. । सा. रसा. १). सप्तकानि च पञ्चवमाहारं मधुरं भजेत् ॥ सूक्ष्मचूर्णेन वाराह्याः शृतं क्षीर विमन्थितम् । दुग्धोदनं तथा रात्री क्षारमम्लं च वर्जयेत् ।
तदाज्यमधुसंयुक्तं मासमेकं रसायनम् ॥ . रेतः क्षयी नपुंसोऽपि गच्छेच्च प्रमदा शतम् ।। अपुत्रः पुत्रमाप्नोति षण्ढोऽपि पुरुषायते ।।
___बाराही कन्दका बारीक चूर्ण मिलाकर दूध दृष्टप्रत्यययोगोऽयं सत्यमेतदुदीरितम् ॥
| पकावें और उसका दही जमा कर घी निकालें । ____ कौच के छिलके रहित सूखे बीज ८ पल |
इसे शहद मिलाकर सेवन करना चाहिये । और छिलके रहित उड़दकी दाल ८ पल (४० । यह प्रयोग रसायन है । इसे १ मास तक तोले ) लेकर दोनोंको पानीमें भिगो दें और सेवन करना चाहिये । फूल कर नरम हो जाने पर अत्यन्त बारीक पिछी
(७१५७) वार्ताकयोगः पीस लें । तदनन्तर उसमें केसर, नागकेसर, जावित्री, शतावर, गोखरु, तालमखाना, लौंग, काली
( वृ. मा. । अर्शा.) मिर्च, पीपल और सिंघाडेका ११-१। तोला स्विन्नं वार्ताकफलं घोषायाः क्षारजेन सलिलेन । बारीक चूर्ण मिलाकर ११- १॥ तोले के वटक | तद् घृतभृष्टं युक्तं गुडेन वा तृप्तितो योऽत्ति ॥ बना लें और उन्हे ६ सेर घी में तलकर (पकाकर) पिबति च तक्रं नूनं तस्याऽऽश्वेवातिवृद्धगुद. पत्थर या कांचके पात्रमें ६ सेर शहद में डाल
जानि । दें एवं उसका मुख बन्द करके ३ दिन तक रक्खा यान्ति विनाशं पुंसः सहजान्यपि सप्तरात्रेण ॥ रहने दें; और फिर नित्य प्रति १-१ वटक थोड़े
। बैंगन के फलोंको सोयेके क्षारके पानी में घी और शहदमें मिला कर सेवन करें।
सिजा कर घीमें भून लें। पथ्य-मधुरोहार, दूध, भात ।
इन्हें गुड़ में मिलाकर पेट भर खानेके पश्चात् अपथ्य-क्षार और अम्ल । तक पीने से सात दिन में अत्यन्त प्रवृद्ध सहजाशके इसके सेवन से वीर्य क्षीणता और नपुंस्कता। मस्से भी अवश्य नष्ट हो जाते हैं।
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