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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८१८. भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि . - गोक्षुरेक्षुरबीजानि लवङ्ग मरिचं कणा। अवश्य नष्ट हो जाती है एवं नपुंसक पुरुष भी शृङ्गाटकं कर्षमितं कुर्यादेवं पृथक् पृथक् ॥ | अनेक स्त्रियों से रमण करने और सन्तानोत्पादनमें सूक्ष्मचूर्ण विधायाथ पूर्वषिष्टे निधापयेत् । समर्थ हो जाता है। वटकान् कारयेत्पश्चात् कर्षमात्रान् विपाचयेत् ॥ यह प्रयोग अनुभूत है। घृतप्रस्थत्रयेणैव सुतलय्य निमज्जयेत् । (७१५६) वाराहीकन्दयोगः माक्षिके घृतमाने वै मुखं रुन्ध्यादिनत्रयम् ॥ । मध्वाज्यमिश्रितं भक्षेदेकैकं वटकं प्रगे।। (ग. नि. । सा. रसा. १). सप्तकानि च पञ्चवमाहारं मधुरं भजेत् ॥ सूक्ष्मचूर्णेन वाराह्याः शृतं क्षीर विमन्थितम् । दुग्धोदनं तथा रात्री क्षारमम्लं च वर्जयेत् । तदाज्यमधुसंयुक्तं मासमेकं रसायनम् ॥ . रेतः क्षयी नपुंसोऽपि गच्छेच्च प्रमदा शतम् ।। अपुत्रः पुत्रमाप्नोति षण्ढोऽपि पुरुषायते ।। ___बाराही कन्दका बारीक चूर्ण मिलाकर दूध दृष्टप्रत्यययोगोऽयं सत्यमेतदुदीरितम् ॥ | पकावें और उसका दही जमा कर घी निकालें । ____ कौच के छिलके रहित सूखे बीज ८ पल | इसे शहद मिलाकर सेवन करना चाहिये । और छिलके रहित उड़दकी दाल ८ पल (४० । यह प्रयोग रसायन है । इसे १ मास तक तोले ) लेकर दोनोंको पानीमें भिगो दें और सेवन करना चाहिये । फूल कर नरम हो जाने पर अत्यन्त बारीक पिछी (७१५७) वार्ताकयोगः पीस लें । तदनन्तर उसमें केसर, नागकेसर, जावित्री, शतावर, गोखरु, तालमखाना, लौंग, काली ( वृ. मा. । अर्शा.) मिर्च, पीपल और सिंघाडेका ११-१। तोला स्विन्नं वार्ताकफलं घोषायाः क्षारजेन सलिलेन । बारीक चूर्ण मिलाकर ११- १॥ तोले के वटक | तद् घृतभृष्टं युक्तं गुडेन वा तृप्तितो योऽत्ति ॥ बना लें और उन्हे ६ सेर घी में तलकर (पकाकर) पिबति च तक्रं नूनं तस्याऽऽश्वेवातिवृद्धगुद. पत्थर या कांचके पात्रमें ६ सेर शहद में डाल जानि । दें एवं उसका मुख बन्द करके ३ दिन तक रक्खा यान्ति विनाशं पुंसः सहजान्यपि सप्तरात्रेण ॥ रहने दें; और फिर नित्य प्रति १-१ वटक थोड़े । बैंगन के फलोंको सोयेके क्षारके पानी में घी और शहदमें मिला कर सेवन करें। सिजा कर घीमें भून लें। पथ्य-मधुरोहार, दूध, भात । इन्हें गुड़ में मिलाकर पेट भर खानेके पश्चात् अपथ्य-क्षार और अम्ल । तक पीने से सात दिन में अत्यन्त प्रवृद्ध सहजाशके इसके सेवन से वीर्य क्षीणता और नपुंस्कता। मस्से भी अवश्य नष्ट हो जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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