________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मिश्रप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
८१९
-
वितम् ।
(७१५८) वालुकास्वेदः
(७१६०) वासादिपानकम् (भै. र. । ज्वरा.; भा. प्र. । म. खं. २) ... (हा. सं. । स्था. ३ अ. १०) खपरभृष्टपटस्थितकाञ्जिकसंसिक्तवालुकास्वेदः। वासापत्ररसं विधाय मतिमान् योज्यानि चेशमयति वातकफामयशूलाङ्गभङ्गकम्पादीन् ॥
मानि तु कम्पे शिरोहृदयगात्रव्यथायां जम्भायां पाद- रोधं चोत्पलमृत्तिकासमधुकं कुष्ठं प्रियङ्ग्व
सुप्ततायाम् । पिण्डिकोद्वेष्टनेऽङ्गसादे हनुस्तम्भे च लोमहर्षे । चूर्ण पुष्परसेन पानकमिदं पित्ताश्रयाणां हितं..
बालुका (रेती) को ठीकरे ( या कढ़ाई | कासं कामलपाण्डुरोगक्षतजश्वासापमर्दी भवेत् ॥ आदि ) में खूब गरम करके कांजी में डाल दें
___ लोध, सौराष्ट्री ( गोपीचन्दन ), मुलैठी, कूठ, और फिर उसे तुरन्त ही कपड़े की पोटली में बांध
और प्रियंगु समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और कर उससे पीड़ित स्थानों पर सेक करें ।
| उसे बासे ( अडूसे ) के रसमें मिलाकर शहदसे इस सेकसे वायु, कफ, शूल, गात्रको टूटना | मीठा कर लें। ( अङ्गमर्द), कम्प, शिरपीड़ा, हृदय व्यथा, गात्र
इसे पीनेसे पित्त प्रधान कास, कामला, पाण्डु व्यथा, जम्भाई, पैरोंकी सुप्तता, पिण्डलियोंका दर्द, अङ्गसाद, हनुस्तम्भ और लोम हर्षादि का नाश
और क्षतज श्वास का नाश होता है। होता है।
( बासे का रस १ तोला, चर्ण २-१॥ माशे।) (७१५९) वाष्पयोगः
(७१६१) विजयायोगः (वै. म. । पटल ६)
(व. से. । नासा.) अनलेन सुतप्तमृत्सुपिण्डा
पुटपाकं जयापत्रं सिन्धुतैलसमन्वितम् । स्तनजाक्ताजनितः सबाष्पयोगः।। प्रतिश्यायेषु सर्वेषु शीलितं परमौषधम् ॥ अभिघातसमुद्भवं विकारं
भांग के पत्ते, सेंधा नमक और तिलका तेल नयनस्याशु विनाशयेदवश्यम् ॥ समान भाग ले कर सबको हांडीमें बन्द करके पुट
पाक करें। मिट्टीके ढेलेको अग्नि में खूब तपाकर स्त्रीके दूधमें बुझायें; और उससे जो भाफ निकले बह इसे सेवन करने से समस्त प्रकारके प्रतिआंखको लगावें। इससे नेत्रों के अभिघात जन्य श्याय नष्ट होते हैं । विकार अवश्य शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
( मात्रा-१ माशो।)
For Private And Personal Use Only