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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www. kobairthors Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः और संभालु समान भाग लेकर सबको पानीके (७१५३) वरुणपत्रोद्वर्तनम् साथ पीस लें। (रा. मा. । स्त्री रोगा. ३०) इसे मन्दोष्ण करके मुख में धारण करने से घृष्टानि गव्यशकृता प्रथमं ततश्च अथवा इन्हीं ओषधियों के क्वाथ से ५०० कुल्ले | पिष्टैर्जले वरुणकस्य दलैः प्रकामम् । करनेसे दन्त रोग नष्ट होते हैं । उद्वर्तितानि सहसैव नितम्बिनीनां नाशं प्रयान्ति सुमहान्त्यपि किकिसानि॥ (७१५०) वचागुत्सादनम् प्रथम रोगस्थान पर गायका गोबर मलें और (वृ. नि. र. । बाला.) फिर वहां पानीमें पिसे हुवे बरनेके पत्ते खूब मलें वचां वयस्थां जटिलां गोलोमीं चापि धारयेत्। तो स्त्रियों का किक्किस रोग शीघ्र ही नष्ट हो उत्सादनं हितं चात्र स्कन्दापस्मारनाशनम् ॥ जाता है। स्कन्दापस्मारग्रस्त बच्चे के गले में बच, (७१५४) वर्षाभ्वादिक्षारम् हर्र, सफेद बच या गोलोमी डालनेसे अथवा उसके | (वृ. नि. र. । शोथा, ) । शरीर पर इनका चूर्ण मर्दन करनेसे लाभ होता है। क्षीरं शोथहरं दारुवर्षाभूनागरैः शृतम् । (७१५१) वनकार्पासादियोगः पेयं वा चित्रकव्योपत्रिद्दारुप्रसाधितम् ॥ (व. से. । गण्डमाला.) देवदारु, पुनर्नवा और सौंठसे अथवा चीता, वनकार्पास मलं तण्डुलैः सह योजितम् । सोंठ, मिर्च, पीपल निसोत और देवदारु से सिद्ध पक्त्वाज्ये पोलिकां खादेदपचीनाशनाय ॥ | किया हुवा दूध शोथको नष्ट करता है। . वनकपासकी जड़को पीस कर चावलोंकी (समान भाग मिश्रित्त ओषधियोंका अधकुटा पिट्टीमें मिलाकर उसकी धीमें पूरी तल कर खानेसे चूर्ण २ तोले, दूध ३२ तोले, पानी १२८ अपची नष्ट होती है। तोले ।) (७१५२) वमनयोगः (७१५५) वाजीकरो वटकः ( ग. नि. । तृष्णा. १५) (र. प्र. सु. । अ. १२) वारिशीतं मधुयुतमाकण्ठाद्वा पिपासितम् ।। आत्मगुप्ताफलं शुष्कं निस्तुषं चाष्टपालिकम् । मापस्याष्टपलं तद्वज्जलेन परिपेषितम् ॥ पाययेद्वामयेच्चापि तेन तृष्णा प्रशाम्यति ॥ | आर्द्रत्वे चातिरुचिरं शिलापटेन पेपयेत् । ठण्डे पानीमें शहद मिलाकर कण्ठ पर्यन्त | कुङ्कुमं केशरं चैव जातीपत्रं शतावरी । पिला कर वमन करानेसे तृषा शान्त हो जाती १ केशादिको नष्ट करनेवाले कृमि विशेष । 108 For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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