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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५८ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि आयुश्च दीर्घमनघं वपुषः स्थिरत्वं देनेसे ही अत्यन्त शीघ्र टुकड़े टुकड़े हो जाती है हानि वलीपलितयोरतुलं बलश्च ॥ | और उसमें रूक्षता तथा ललाई होती है। साधारण शुद्ध गन्धकके चूर्णको भंगरेके | मृदु और मध्यम पाक वाली पर्पटी सेवन रसकी ७ या ३ भावना दे कर सुखावें और खरल | करने योग्य होती है परन्तु खरपाक विष समान कर लें। त्याज्य है। पर्पटी सेवन करनेसे पूर्व शिवपूजन और तदनन्तर उसे (घृतलिप्त ) लोह पात्रमें द्विजोंको नमस्कार करना चाहिये । मन्दाग्नि पर पिघला कर भगरेके रसमें बुझा दें और फिर निकाल कर सुखा लें। ___पहिले दिन प्रातःकाल २ रत्ती पर्पटी खानी चाहिये और फिर प्रतिदिन १-१ रत्ती बढ़ानी ___यह गन्धक ५ तोले, शुद्ध पारद २।। तोले, चाहिये । जब दश रत्ती भात्रा पर पहुंच जाएं तो चांदी भस्म १॥ तोला, स्वर्ण भस्म ७॥ माशे, फिर आरोग्य होने तक नित्य १० रत्ती ही खाते वैक्रान्त भस्म ३॥ माशे और मुक्ता भस्म ३॥ | रहें और इसके पश्चात् प्रतिदिन १-१ रत्ती घटा माशे ले कर सबको लोहेके खरलमें डाल कर कर सेवन करें, और १ रत्ती पर पहुंचनेके पश्चात् कज्जली बनावें और उसे घृतलिप्त लोहपात्रमें बन्द कर दें। इसकी मात्रा १० रत्तीसे अधिक बेरीकी लकड़ियोकी अग्नि पर पिघला कर यथा कदापि न बढ़ानी चाहिये । विधि पर्पटी बना लें। ( पर्पटी बनानेकी विधि इसके सेवन कालमें अजीर्ण हो जाने पर " पर्पटी रस (१)" में देखिये ।) अथवा भोजनका समय बीत जाने पर भोजन न पर्पटीका पाक करते समय जब मयूरपुच्छकी करना चाहिये । चन्द्रिकाके समान दिखलाई देने लगे तो पाक व्यञ्जन (यूष, शाकादि) बनानेमें घी, सेंधातैयार समझना चाहिये । नमक, धनिया, हींग, जीरा, और सेठिका उपयोग पर्पटीका पाक ३ प्रकारका होता है-(१) | करना चाहिये । मृदु, (२) मध्यम और (३) खर । मृदु और | यदि पित्तकी अधिकता हो तो मधुर और मध्यम पाकवाली पर्पटं में पारद दिखलाई देता है | अम्ल पदार्थ तथा शहद सेवन कराना चाहिये । और खरपाकमें दिखलाई नहीं देता। पथ्य-पटोल फल (परवल), पटोल पत्र, - मृदुपाक वाली पर्पटी तोडनेसे अच्छी तरह | काला बैंगन, तुरई, और उबाली हुई सुपारी तथा नहीं टूटती और मध्यम पाकवाली भली भांति टूट | कर्पूर युक्त पान । जाती है तथा उसे तोड़ने पर चांदीको सी चमक यदि आहारकालमें भोजन न करनेसे वायु माछम होती है । खरपाक पर्पटी जरासा दबाव । कुपित हो जाय और शरीरमें झनझनाहट, शिर For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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