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रसप्रकरणम् ]
चतुर्यों भाग:
शूल, अतिसार, वमन, तृषा एवं पित्तकी अधिकता प्रातः काल सेवन किया जाय तो काम शक्ति और आदि उपद्रव प्रकट हो तो नारियलका पानी बलकी अत्यन्त वृद्धि होती है; शरीर दृढ़ हो निर्भय हो कर देना चाहिये । एवं नारियलका जाता है और बलि पलि-रहित दीर्घायु प्राप्त दूध पिलाना और दोनों समय दुग्धाहार कराना | होती है । चाहिये।
विजयपर्पटीरसः ____ यदि स्वप्नमें वीर्यस्राव हो जाय तो सुनहरी |
(र. रा. सु. । सन्निपाता.) छाल वाला केला खिलाना चाहिये।
प्र. सं. ५५७६ “महा विजय पर्पटी रसः" ___ अपथ्य-निंबादि तिक्त शाक, अम्लपाक
देखिये। वाले पदार्थ, कांजी, सुरा, चम्पक (सुनहरे) केलेके फलके अतिरिक्त अन्य हर प्रकारके केलेका फल
(७०२०) विजयभैरवरसः (१) पत्र और मूल, खीरा, लौकी, ककड़ी, पेठा . (विजयानन्दः) (कुम्हड़ा), करेला, व्यायोम और रात्रि जागरण।
( रसे. चि. म. । अ. ९ ; रसे. सा. सं. ; र. ____ यदि जीवनकी इच्छा हो तो इसके सेवन
रा. सु. । कुष्ठा.) कालमें ( कामवासनासे ) स्त्रीको देखना या स्पर्श
सप्तकञ्चुकनिर्मुक्तमूर्द्धलग्नं रसेन्द्रकम् । . तक करना न चाहिये । यदि भूलसे स्त्रीप्रसंग
मृत्कटाहान्तरे तत्र स्थापयेच्च समन्त्रकम् ॥ हो जाय तो तुरन्त उसका प्रतिकार करना
सूताद्विगुणितं तालं कूष्माण्डद्रवशोधितम् । चाहिये।
दोलायन्त्रेण तैलादौ सप्तधा परिशोधितम् ॥ इसके सेवनसे बहुत वर्षों की पुरानी, अत्यन्त दत्त्वाऽऽप्लाव्यद्रवैण्टियाः किश्चिदाप्लाव्य कष्ट साध्य संग्रहणी तथा दारुण आम शूल,
. युक्तितः। अतिसार, ६ प्रकारके अर्श, उपद्रव युक्त रोजयक्ष्मा,
तयोद्विगुणितं भस्म पलाशस्योपरि क्षिपेत् ॥ शोथ, कामला, पाण्ड, प्लीहा, जलोदर, पक्तिशूल, पुनझिण्टीद्रवेणैव सर्वमाप्लाव्य यत्नतः । .. अम्लपित्त; वातरक्त, वमन, कृमि रोग, कुष्ठ, प्रमेह,
खाखशाकरसैर्भूयः परिप्लाव्य च पाकवित् ॥ विषमज्वर और वातज, पित्तज तथा कफज कष्ट पचेदवहितो वैद्यः सालाङ्गारेण यत्नतः । साध्य ज्वरका नाश होता है।
चतुर्विशतियामन्तु पत्त्या शीतलतां नयेत् ॥ - यदि इसे वृद्ध पुरुष भी सेवन करे तो वलि अवतार्य काचपात्रे विधाय तदनन्तरम् । पलित निर्मुक्त, बुद्धिमान और श्रीयुक्त हो कर १०० | प्रयत्नेन कृतप्रायश्चित्तः शोधितदेहकः ॥ वर्ष तक जीवित रहता है । . .
सिता हरीतकीयुक्तं खादेद्रक्तिचतुष्टयम् । यदि इसे दीर्घ काल तक २ रेत्ती मात्रानुसार । रक्तिकैकक्रमेणैव वर्द्धयेद्दिनसप्तकम् ॥
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