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भारत - भैषज्य रत्नाकर:
(७००७) वातारि रसः (६)
(र. रा. सु. । अतीसारा. ) वात गजाङ्कुश रसः प्र. सं. ६९८२ देखिये । इसमें हरताल और त्रिकुटा नहीं है तथा भावनाद्रव्योंमें मुण्डीकी जगह शुण्ठी पाठ है । शेष प्रयोग समान है ।
वातारि रसः (७)
( र. का. । वातव्या ; र. मं. ; वृ. नि. र. ) वातनाशनो रसः देखिये ।
(७००८) वान्तिद्रसः
( र. चं. ; यो. र. ; र. का. धे. । छद्ये. )
अयः शङ्खो बलिः सुतः खल्वे तुल्यं विमर्दयेत्। कन्याकनकचाङ्गेरीरसैगलं विधाय च ॥ सप्तमृत्कटै लिप्त्वा पुटितो वान्तिहृद्रसः । द्विवल्ल : कृमिरोगेऽपि साजमोदः सवेल्लकः ॥ वान्तिहारेण मुनिना प्रोक्तोऽयं मधुना युतः । पिप्पलक्षारपानीयं पाययेद्वान्तिहृद्भिषक् ॥
लोह भस्म, शंख भस्म, शुद्ध गंधक और शुद्ध पारद समान भाग ले कर सत्रको एकत्र खरल करके कज्जली बनायें और उसे घृतकुमारी, धतूरा, तथा चांगेरीके रसको १–१ भावना दे कर गोला बनावें और उसे शरावसम्पुटमें बन्द करके, उस पर सात कपर मिट्टी करके ( भूधरपुट में ) पकावें ।
मात्रा - ४ रत्ती |
इसे अजमोद और बायबिडंगके चूर्ण में मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से कृमि रोग ( और उसके कारण होने वाली वमन ) का नाश होता है ।
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[ वकारादि
मनमें पीपल की छालको जलाकर, बुझाकर वह पानी पिलाना चाहिये ।
पानी में
(७००९) वारिताण्डवरसः ( रसे. सा. सं.; र. रा. सु. । भगन्दरा. ; रसे. चि. म. । अ. ९)
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शुद्धतं द्विधा गन्धं कुमारीरसमर्द्दितम् । त्र्यहान्ते गोलकं कृत्वा ततस्तेन प्रलेपयेत् ॥ द्वयोः समं ताम्रपत्रं हण्डिकान्तर्निवेशयेत् । तद्भाण्डं भस्मनापूर्य्यं चुल्ल्यां तीव्राग्निना पचेत् ॥ द्वियामान्ते समुद्धृत्य चूर्णयेत्स्वाङ्गशीतलम् । जम्बीरस्य रसैः पिष्ट्वा रुद्धा सप्तपुटे पचेत् ॥ गुजैकं मधुनाज्येन लेह्याद्धन्ति भगन्दरम् । मूसली लवणञ्चानु आरनालयुतं पिबेत् ।। भुञ्जीत मधुराहारं दिवास्वप्नञ्च मैथुनम् । वर्जयेच्छीतलाहारं रसेस्मिन्वारिताण्डवे ॥
शुद्ध पारद १ भाग और शुद्ध गंधक २ भाग ले कर दोनोंकी कज्जली बनावें और उसे ३ दिन तूक घृतकुमारीके रस में खरल करके ३ भाग शुद्ध ताम्र पत्रों पर लेप कर दें एवं उन्हें कपरमिट्टी की हुई हाण्डीमें रख कर, उन पर शराब ढक दें और सन्धिको गुड़नेके मिश्रण आदिसे बन्द करके हाण्डीके शेष भागको राखसे भर दें । तदन्
उसे चूल्हे पर चढ़ाकर २ पहर तीब्राझि पर पकावें और फिर उसके स्वांगशीतल होने पर ताम्र पत्रोंको निकाल कर जम्बीरी नीबू के रस में घोटकर यथा विधि गजपुटमें पकावें । इसी प्रकार जम्बीरी नीबूके रसमें घोट घोट कर सात पुट दें । मात्रा - १ रत्ती । यह भगन्दरको नष्ट है 1
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