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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ७५३ इसे शहद और धीमें मिला कर सेवन करना | गिरीकर्णी जयन्ती च तिलपर्णी च भृङ्गजैः । तथा औषध खानेके पश्चात् मूसली और सेंधानमक- | दण्डोत्पलं शिग्रुदन्ती कदम्ब केशराजकः ॥ का चूर्ण कांजीमें मिला कर पीना चाहिये । जयाकृष्णा महाराष्ट्री एभिर्मथै क्रमावः । इस पर मधुर रस युक्त आहार करना और प्रतियामं तु तच्छुष्कं कटुतैलेन लोलयेत् ॥ दिवानिद्रा, मैथुन तथा शीतल आहारसे परहेज़ | शरावसम्पुटे रुध्वा वालुकायन्त्रगं पचेत् । करना चाहिये। यामैकेन समुद्धत्य चूर्णितं तं त्रिगुञ्जकम् ॥ त्र्यूषणं पश्चलवणं क्षारत्रीणि द्विजीरकं । (७०१०) वारिभक्तवटिका | वाकयवानी च समभाग तु चूर्णयेत् ।। (र. र. । अग्निमान्द्या.) अनुपानं चतुर्मापं सन्निपातहरं हितम् । रसगन्धकमभ्रञ्च गुडूचीसत्वमेव च। माहिषं दघिसंयुक्तं पथ्यं स्याद्रसवीर्यकृत् ॥ विडङ्ग मरिचं चैव सर्वमेकत्र कारयेत् ॥ साध्यासाध्ये प्रयोक्तव्यो रसोयं वारिसागरः ।। आर्द्रकस्य रसेनापि गुटिकां कारयेद्बुधः । १ भाग शुद्ध पारद, २ भाग शुद्ध गंधक भक्षयेन्मासमात्रन्तु अम्लतोयानुपानतः ॥ और ४ भाग अभ्रक भस्मकी कजली बना कर अग्निश्च कुरुते दीप्तं सामाजोणे प्रणाशनम् ॥ उसे १-१ पहर संभालु, मकोय, धतूरा, अदरक, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, | चीता, कोयल, जयन्ती, चन्दन, भंगरा, दण्डोत्पल गिलोयका सत, बायबिडंगका चूर्ण और काली (सहदेवी), सहजनेकी छाल, दन्तीमूल, कदम्बके मिर्चका चर्ण समान भाग ले कर प्रथम पारे पुष्प, काला भंगरा, अरणी, पीपल और महाराष्ट्री गंधककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य | (जल पीपल ) के रस में पृथक् पृथक् खरल करें ओषधियांका चूर्ण मिला कर, अदरकके रसमें घोट | तथा सूख जाने पर सरसेांके तेलमें उसकी लुगदीकर १-१ माशेकी गोलियां बना लें। सी बना कर उसे शरावसम्पुटमें बन्द करके १ इन्हें कांजीके साथ सेवन करनेसे आमाजीण- पहर बालुका यन्त्रमें पकावें और उसके स्वांग का नाश होता और अग्नि दीत होती है। शीतल होने पर चूर्ण करके रक्खें । ( व्यवहारिक मात्रा--४ रत्तो।) मात्रा--३ रत्ती। अनुपान-साठ, मिर्च, पीपल, सेंधा नमक, (७०११) वारिसागरो रसः | संचल नमक, विड लवण, सामुद्र लवण और ( रसे. चि. म. । अ. ९ ; र. रा. सु. ; र. का. | काच लवण, जवाखार, सञ्जीखार, सुहागा, जीरा, धे. ; धन्व. ; र. र. । ज्वरा.) काला जीरा, बच, अदरक और अजवायन समान शुद्धं सूतं द्विधा गन्धं चतुर्भागं मृताभ्रकम् । भाग ले कर चूर्ण बनावें । औषध खानेके पश्चात् निर्गुण्डी काकमाची च धत्तराईकचित्रकैः ॥ ! ४ माशे यह चूर्ण खाना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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