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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम्] चतुर्थों भागः ७५१ मांद्य, गुल्म, वातरक्त, ज्वर, शूल, अजीर्ण और | (व्यवहारिक मात्रा-२ माशे। ) शोथका नाश होता है। इसे प्रातःकाल सेवन करना चाहिये और _इसके प्रयोग कालमें तेल, क्षार और अम्ल | औषध खानेके पश्चात् सेठि तथा अरण्डमूलका पदार्थोसे परहेज़ करना तथा मधुर रस युक्त भोजन काथ पीना; शरीर पर अण्डीके तेलकी मालिश करना चाहिये । प्रारम्भके ८ दिनोंमें धी थोड़ा करके पीठ पर सेक करनी एवं निर्वात स्थानमें खाना चाहिये । रहना चाहिये। इसे १ मास तक सेवन करनेसे समस्त जब इससे विरेचन हो जाय तो स्निग्धोष्ण रोग नष्ट हो जाते हैं। | भोजन करना चाहिये। (७००५) वातारि रसः (४) इसे १ मास तक ब्रह्मचर्यव्रत पालन करते (र. र. स. । उ. १८, २१ ; धन्व. ; वृ. नि. | हुवे सेवन करनेसे अन्त्रवृद्धि नष्ट होती है। र. ; वै. र. । वातव्या. ; र. चं. ; र. रा. सु. ; (७००६) वातारि रसः (५) रसे. सा. सं. । वातव्या. ; भै. र. । ( र. का. धे. । वातव्या.) वृद्धिरोगा. ) रसभागो भवेदेको द्विगुणो गन्धको मतः। दिनत्रयं गन्धसमं रसेन्द्र त्रिभागा त्रिफला ग्राह्या चतुर्भागश्च चित्रका विमर्दयेच्छ्वे तवसुद्रवेण। गुग्गुलुः पञ्चभागः स्यादेरण्डस्नेहमर्दितः। ताम्रस्य चक्रेण निरुध्य वह्नि क्षिप्त्वात्र पूर्वकं चूर्ण पुनस्तेनैव मर्दयेत् ।। दद्याद्वरीभृङ्गरसैविमर्थ ॥ गुटिकां कर्षमात्रां तु भक्षयेत्प्रातरेव हि । कटुत्रयेणानु पिबेच्च माफ मागरेरण्डमूलानां क्वाथं तदनुपाययेत् ॥ वातारिनामेति मरुत्पशान्त्यै ॥ अभ्यज्यैरण्डतैलेन स्वेदयेत्पृष्ठदेशकम् । समान भाग शुद्ध पारेद और गंधककी कज्जली विरेके तेन सआते स्निग्धमुष्णं च भोजयेत ॥ बना कर उसे ३ दिन सफेद आकके रसमें खरल वातारि सज्ञको ह्येष रसो निर्वातसेवितः।। करें और फिर गोला बना कर उसे ताम्रसम्पुट में मासेन सुखयत्वेव ब्रह्मचर्यपुरः सरः ॥ बन्द करके ( भूधर पुटमें ) पकावें । तदनन्तर ५ भाग शुद्ध गूगलको अरण्डीके तेलमें घोट शतावर और भंगरेके रसकी १-१ भावना देकर कर पतला करें और फिर उसमें १ भाग पारद सुरक्षित रक्खें। और २ भाग गन्धककी कज्जली, ३ भाग त्रिफले- मात्रा-१ माशा। का चूर्ण और ४ भाग चीतेका चूर्ण मिला कर ( व्यवहारिक मात्रा--२ रत्ती।) अच्छी तरह खरल करके ११-१। तोलेकी गुटिका इसे त्रिकुटेके चूर्णमें मिला कर सेवन करनेसे बना लें। | वातव्याधिका नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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