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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ७१९ (३) उक्त दोनों योगोंको एकत्र मिला कर यदि इस प्रकार भोजन नहीं किया जायगा तो उसमें ७॥-७१ माशे प्रवाल और मोतीका चूर्ण प्रज्वलित जठराग्नि धातुओंको भस्म कर डालेगी। मिला दें। ____ इसे केवल १ दिन खा कर ४० दिन तक (४) १० माशे लोह भस्म, १५ माशे शीशा पथ्य पालन करना चाहिये । इसके पश्चात् इच्छाभस्म और २० माशे ताम्र भस्मको पृथक् पृथक् | नुसार आहार कर सकते हैं। ३-३ दिन चाझरी ( चूके ) के रसमें खरल करें। इस प्रकार इस औषधको केवल १ बार और फिर सबको उपरोक्त योगमें मिला दें । तद- सेवन करनेसे ही मनुष्य १२ वर्ष तक स्वस्थ नन्तर उसमें १०-१० माशे नीलकी जड़, कुटकी | रहता है। अभ्रक भस्म, लोह भस्म, कान्त लोह भस्म, शुद्ध यदि १२ वर्ष तक, प्रति वर्ष एक दिन यह हरताल और २०-२० माशे अंकोलके बीज, औषध सेवन करके उपरोक्त विधिसे पथ्य पालन कंगनीके बीज तथा शुद्ध तूतिया; ४० माशे सुहागा किया जाय तो वृद्धावस्थाका भय नहीं रहता। तथा सौ माशे कौडी भस्म मिला कर सबको ___यह रस क्षय रोगको अत्यन्त शीघ्र नष्ट कर २ सेर बड़े जम्बीरो नीबूके रसमें खरल करें ।। देता है। जब रस सूख जाए तो सबका गोला बना (६९४०) वटशुङ्गादियोगः कर सुखा लें और उसे यथाविधि शराव-सम्पुट में (व. से. । स्त्रीरोगा.) बन्द करके ६४ सेर तुषोंकी अग्निमें पुट दें । तदनन्तर उसके स्वांगशीतल हो जाने पर पुनः २ सेर | न्यग्रोधशुङ्गासनकं प्रवालचूर्णश्च सवर्णवत्सायाः। जम्बीरी नीबूके रसमें घोट कर उपरोक्त विधिसे गोक्षीरं परिपीतं पुत्रं प्रकरोति पुष्यः ॥ शरावसम्पुटमें बन्द करें और ६४ सेर उपलोंमें बड़के अंकुर, असना वृक्षकी छाल, और पुट लगा दें। तदनन्तर स्वांगशीतल होने पर प्रवालका चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके सुरक्षित रक्खें । खरल करें। मात्रा-२ माशे । इसमें आधा आधा माशा | इसे अपनेही समान रंगवाले बछड़े वाली शुद्ध गन्धक और काली मिर्चका चूर्ण मिला कर गायके दूधके साथ पुष्य नक्षत्रमें सेवन करनेसे पुत्र उसे शहदमें मिलावें और फिर ताम्बूल पत्र (पान)| प्राप्ति होती है। पर इसका लेप करके खावें । (६९४१) वटेश्वररसः ___ यह औषध खानेके घड़ी भर पश्चात् ही क्षुधा | (र. र. रसा. खं. । उप. २) प्रतीत होगी तब पथ्य भोजन करें और फिर १-१ वटक्षीरस्यहं मध गन्धं शुद्धरसं समम् । पहर पश्चात् पथ्याहार ( दूधादि ) लेते रहें। वटकाष्ठाग्निना पच्यान्मृत्पात्रे यामपञ्चकम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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