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७२० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि क्षिपन् क्षिपन् वटक्षीरं तत्काष्ठेनैव चालयेत् ।। (नोट-रस तथा अनुपानचूर्णकी मात्रा समुद्धत्य त्र्यहं भाव्यं देवदालीदलद्रवैः॥ बहुत अधिक है । मात्राका निर्णय बल, प्रकृति उष्णकाले तु गुजैकं ताम्बूलपत्रसंयुतम् । आदिका विचार करके करना चाहिये । ) चन्द्रद्धया सदा भक्ष्यं यावत् षोडशगुञ्जकम् ॥
(६९४२) वडवाग्निरसः (१) चूर्णमुत्तरवारुण्या बाकुच्या देवदालिजम् । ।
(वडवानिमुखरस:) मध्वाज्याभ्यां लिहेत्कर्ष क्रामकं ह्यनुपानकम् ॥ |
(भै. र. ; रसे. सा. सं. । स्थौल्या. ; र. र. वर्षमात्राअरां हन्ति जीवेद्वर्षशतत्रयम् ।
स. । उ. स्था. अ. १८ ; रसें. चि. म. । अ. ९; रसो वटेश्वरो नाम वज्रकायकरो नृणाम् ॥
| यो. र. । मेदो. ; र. र. । स्थौल्या. ; र. चं. ; शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धककी कज्जली
धन्व. र. रा. सु. । स्थौल्या. ; वृ. नि. र. । करके उसे ३ दिन बड़के दूधमें खरल करें और |
मेदो रोगा.) फिर मिट्टीकी कढ़ाईमें डाल कर बड़की लकड़ियोंमें
शुद्धसूतं समं गन्धं तानं तालं समं समम् । ५ पहर तक पकावें । पकाते समय उसमें थोड़ा
अर्कक्षीरैर्दिनं मर्य क्षौ र्लेयं द्विगुञ्जकम् ।। थोड़ा बड़का दूध डालते रहना और बड़के गीले
वडवाग्निरसो नाम्ना स्थौल्यमाशु नियच्छति ।। (ताज़े) डंडेसे चलाते रहना चाहिये। __तदनन्तर स्वांग शीतल हो जाने पर उसे ३
शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक' तथा ताम्र भस्म दिन बिंडालके पत्तोंके रसमें घोट कर सुरक्षित |
और शुद्ध हरताल समान भाग ले कर सबको १
दिन आकके दूधमें घोट कर रक्खें । रेक्खें । इसे उष्ण ऋतुमें १ रत्ती मात्रानुसार पानमें
| इसे शहदके साथ सेवन करनेसे स्थूलता शीघ्र रख कर खाना प्रारम्भ करें और नित्य प्रति १-१ | ही नष्ट हो जाती है । रत्ती बढ़ोते रहें । जब १६ रत्ती पर पहुंच जाएं मात्रा-२ रत्ती। तो फिर प्रतिदिन १-१ रत्ती घटाना आरम्भ करें।
(६९४३) वडवाग्निरसः (२) इसी प्रकार १ वर्ष तक सेवन करें।
(र. र. स.। उ. अ. १६) औषध खानेके पश्चात् इन्द्रायणकी जड़, बाबची और देवदालीका समान भाग मिश्रित चूर्ण
टङ्कणं मरिच तुत्यं पृथक् कर्षत्रयं भवेत् ।
सुन्दरं द्वादशनिष्क त्रिशनिष्कमयोमलम् ।। १। तोलेकी मात्रानुसार शहद और घीमें मिलाकर
चूर्णान्येतानि संयोज्य स्थापयेच्छुद्धभाजने । चाटना चाहिये । इसके सेवनसे जरा व्याधिका नाश हो कर
शुद्धदेहो नरस्तस्य पानं यद्भोजनोत्तरम् ।। शरीर वज सदृश दृढ़ होता और आयु अत्यन्त १. यो. र. ; र. र. स. में गन्धकके स्थानमें दीर्घ हो जाती है।
| बोल (हीरा बोल ) लिखा है।
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