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चतुर्थी भागः
घृतप्रकरणम् ]
कल्क - काली मिर्च, पीपलामूल, सोंठ, पीपल, भिलावा, अजवायन, बायबिड़ङ्ग, गजपीपल, हींग, काला नमक (सञ्चल ), बिड नमक, सैंधा, चव ( पाठान्तर के अनुसार दारूहल्दी), समुद्र नमक, जवाखार, चीता (चित्रक) और बच २ ॥ - २॥ तोले लेकर एकत्र पीस लें ।
२ सेर दशमूलको १६ सेर पानी में पकाकर ४ सेर शेष रहने पर छान लें तत्पश्चात् २ सेर गोघृत में यह क्वाथ, उपरोक्त कल्क और ४ सेर गायका दूध मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें जब पानी जल जाय तो घृतको छान लें।
यह घृत अग्निको दीप्त और ग्रहणी - दोषको नष्ट करता है तथा कब्ज़, दुर्बलता, तिल्ली, खांसी, श्वास, क्षय, अर्श (बवासीर), भगन्दर और कफज, वातज तथा कृमिजन्य रोगोंको अत्यन्त शीघ्र नष्ट कर देता है ।
(५२१९) मरिचाद्यं घृतम् (२) (ग. नि. । गुल्मा. २५ ) रिपिपली शुण्ठी कटुकी वह्निमौ । सुवर्चला वचा क्षारः प्रत्येकं कर्षमात्रकम् ॥ पलानि षोडशाज्यस्य सुपकं मृदु वह्निना । वातगुल्मं कृमीनहन्ति भुक्तं श्वासमसंशयम् ॥
काली मिर्च, पीपल, सोंठ, कुटकी, चीता (चित्रक), धतूरे के बीज, हुलहुल, बच और जवाखार ११-१| तोला लेकर एकत्र पीस लें तथा सबको १ सेर (८० तोले) घीमें डालकर उसमें ४ सेर पानी मिलादें और मन्दाग्नि पर पकायें जब पानी जल जाय तो घृतको छान लें
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इसे सेवन करने से वातज गुल्म, कृमि और श्वास का नाश होता है ।
(मात्रा - १ तोला । दूध में डाल कर पियें ) (५२२०) मसूरघृतम् (व. से. । ग्रहण्य.)
विश्वाजाजी बिल्वपेशी कल्क सिद्धं घृतं हरेत् । मसूरस्य कषायेण सङ्ग्रहग्रहणीगदम् ||
कल्क - सोंठ, जीरा और बेलगिरी प्रत्येक ३। तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें ।
क्वाथ - २ सेर मसूरको १६ सेर पानी में पकाकर ४ सेर शेष रहने पर छान 1
१ सेर गोघृत में उपरोक्त क्वाथ और कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें जब क्वाथ जल जाय तो धोको छान लें ।
यह घृत संग्रहणीको नष्ट करता है । (५२२१) मसूरादिघृतम् (१) (शा. ध. । खं, २ अ. ९; ग. नि.; वृ. मा. | ग्रहण्य.; वॄ. नि. र. । अतिसार ; व. से. । ग्रहण्य.) मसुराणां पलशतं नीरद्रोणे विपाचयेत् । पादशेषं शृतं नीत्वा दवा बिल्वपलाष्टकम् || घृतप्रस्थं पचेत्तेन सर्वातीसारनाशनम् । ग्रहणीं भिन्नविकां च नाशयेच्च प्रवाहिकाम् ।।
क्वाथ - १०० पल ( ६ । सेर) मसूरको ३२ सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें ।
२ सेर ( १६० तोले ) गोघृत में उपरोक्त Fare और ४० तोले बेलगिरी का चूर्ण मिलाकर
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