________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
भारत-भ - भैषज्य रत्नाकरः
६४
मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जावे तो घृतको छान
लें 1
यह घृत त्रिदोष जन्य अर्श (बवासीर), अतिसार, संग्रहणी, पाण्डु, ज्वर, अरुचि, मूत्रकृच्छ्र, गुदभ्रंश (कांच निकलना ), अफारा, रक्तातिसार, प्रवाहिका तथा शूल को नष्ट करता है ।
(५२१५) मधुकादिघृतम् (३) (व. से.; वृ. मा. | नेत्ररोगा . ) आज घृतं क्षीरपात्रं मधुकं सोत्पलानि च । taarat मेदा पिट्वा सर्पिर्विपाचयेत् ॥ सर्वनेत्राभिघातेषु सर्पिरेतत्प्रशस्यते ॥
बकरीका घी १ सेर, बकरी का दूध ४ सेर और मुलैठी, नीलोत्पल (नीलोफर), जीवक, ऋषभक तथा मेदाका कल्क २-२ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकायें जब पानी जल जाए तो घीको छान लें
1
महुवे के फूलों का कल्क (पिट्ठी) १० तोले, आमलेका रस ३२ सेर तथा २ सेर गोघृत लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें जब रस जल जाय तो घृतको छान 1
१ वृन्द माधवमें मेदाका अभाव है।
[ मकारादि
यह घृत पित्तापस्मार ( मिरगी ) में अधिक
लाभदायक है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मधूच्छिष्ठाद्यं घृतम् ( व. से., वृ. मा. । व्रग. ) लेपप्रकरण में देखिये | (५२१७) मनःशिलादिघृतम् (च. सं. । चि. अ. २१ हिक्का.) मनःशिलासर्जरसलाक्षारजनिपद्मकैः । मञ्जिष्ठैव कर्षशैः प्रस्थः सिद्धो घृताद्धितः ॥
मनसिल, राल, लाख, हल्दी, पद्माक, मजीठ और इलायची का चूर्ण ११ - ११ तोला तथा गोघृत १ सेर (८० तोले) और पानी ४ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें एवं पानी जल जाने पर घृतको छानकर सुरक्षित रक्खें ।
यह घृत हिक्का (हिचकी) में लाभ पहुंचाता है। (५२१८) मरिचाद्यं घृतम् (१) ( च. द.; वृ. मा.; व. से. । ग्रहण्य. )
(५२१६) मधूकघृतम्
(व. से.; वृ. नि. र. । अपस्मार . ) मधूपले कल्के द्रोणे चामलकीर से । तस्मिन् सिद्धं घृतप्रस्थं पित्तापस्मारभेषजम् ॥
यह घृत अभिघात जनित समस्त नेत्ररोगों में मरीचं पिप्पलीमूलं नागरं पिप्पली तथा ।। उत्तम गुणकारी है । भल्लातकं यवानीच विडङ्गं हस्तिपिप्पली । हिङ्गु सौवर्चलं चैव विसैन्धवचव्यकम् ॥ सामुद्रं सयवक्षारं चित्रको वचया सह । एतैरभिर्धृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ दशमूली से सिद्धं पयसा द्विगुणेन च । मन्दाग्नीनां घृतं श्रेष्ठं ग्रहणीदोषनाशनम् ॥ विष्टम्भमामदौर्बल्यप्लीहानमपकर्षति । कासं श्वासं क्षयं चापि दुर्नाम सभगन्दरम् ॥ कफजान्हन्ति रोगांच वातजान्कुमिसम्भवान् । तान्सर्वान्नाशयत्याशु शुष्कं दावनलो यथा ॥ १ सैन्धवदाव्यथेति पाठान्तरम् ।
For Private And Personal Use Only