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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नस्यप्रकरणम् ] चतुर्यों भागः अथ वकारादिनस्यप्रकरणम् (६८८५) वन्ध्याकर्कोटकीमूलयोगः । इसकी नस्य लेनेसे प्रतिश्याय नष्ट होता है। ( ग. नि. । सर्प विषा. ३; यो. र. । विषा. ; (६८८८) विडङ्गादिनस्यम् यो. त.। त. ७८) ( भा. प्र. म. खं. २; व. से. । शिरोरोगा. ; वन्ध्याकर्कोटजं मूलं छागमूत्रेण भावितम् । वृ. नि. र.) नस्य काधिकसम्पिष्टं विषोपहतचेतसः॥ विडङ्गानि तिलान्कृष्णान्समं कृत्वा तु पेषयेत् । बांझ ककोडेकी जड़को बकरीके मूत्रकी नस्यकर्मणि दातव्यमद्धभेदं व्यपोहति ।। भावना दे कर खरल करके रक्खें । बायबिडंग और काले तिल समान भाग ले सर्प विषसे मूर्छित पुरुषको, कांजीमें पीस कर कर दोनोंको एकत्र पीस लें । इसकी नस्य देनेसे होश आ जाता है । इसकी नस्य लेनेसे अविभेदक (आधाशीशी) का नाश होता है। (६८८६) वासादिनस्यम् (र. रे. । रक्तपित्ता.) (६८८९) विश्वादिनस्यम् ( वृ. मा. । शिरोरोगा.) वासादाडिमपुष्पस्य दूर्वारससमन्वितः । अलक्तकरसोपेतः पथ्यारससमन्वितः ॥ नावनं सगुडं विश्व पिप्पली वा ससैन्धवा । योजितो नस्यतः क्षिप्रं त्रिदोषमपि देहिनाम् । भुजस्तम्भादिरोगेषु सर्वपूर्ध्वगदेषु च ॥ नासारक्तप्रवृत्तन्तु हन्यादिति किमद्भुतम् ॥ सेठिके चूर्ण और गुड़को एकत्र मिला कर उसकी, अथवा समान भाग मिश्रित पीपलके चूर्ण ___ बासे (अडूसे) और अनारके फूलोंका रस, | और सेंधा नमककी नस्य भुजस्तम्भ और शिरोदूर्वाका रस, लाखका रस और हर्रका रस समान | भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर नस्य देनेसे (६८९०) व्योषादिनस्यम् त्रिदोषज नासा प्रवृत्त रक्त ( नकसीर ) भी बन्द (यो. र. । विषूचिका.) हो जाता है। | व्योष करञ्जस्य फलं हरिद्रानिम्बुकद्रवैः। (६८८७) विडङ्गादिचूर्णम् नस्याअने प्रयोक्तव्ये कुर्याच्च जलसेवनम् ॥ __(व. से. । नासा.) सांठ, मिर्च, पीपल, करञ्जकी गिरी और विडङ्ग सैन्धवं हिङ्गु गुग्गुलुः समनःशिलाः। हल्दी; इनके समान भाग मिश्रित चूर्णको नीबूके प्रतिश्यायो वचायुक्तं चूर्णमाघ्राय नश्यति ॥ रसमें खरल करें । विचिकामें इसकी नस्य देनी बायबिडंग, सेंधा नमक, हींग, गूगल, मन- और इसीका अंजन लगाना तथा इन्हीं ओषधियोंसे सिल और बच समान भाग ले कर चूर्ण बनावें। पकाया हुवा पानी पिलाना चाहिये । इति वकारादिनस्यप्रकरणम् गाम ला For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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