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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि अथ वकारादिकल्पप्रकरणम् (६८९१) वृद्धदारुककल्पः | पिप्पली।त्रफलादा-महौषधपुनर्नवाः ॥ ( ग. नि. । ओषधि कल्पा.) पृथग्दशपलाः सर्वैस्तुल्यांशो वृद्धदारुकः । धान्याम्लपीतं तच्चूर्ण जीणे स्वच्छन्दभोजिनः॥ वसन्ते सङ्गहीतानि शोषितानि तथाऽऽतपे । सदुष्टवातान् हन्त्याशु गुल्मोदरगरादिकान् । वृद्धदारुकमूलानि सञ्चूर्ण्य सर्पिपा सह ॥ आप्लाव्य घृतपात्रस्थं धान्ये पक्षमुपेक्षितम् । वृद्धदारुक ( विधारे ) की जड़को वसन्त लिह्यादनुपिवन क्षीरं जीणे क्षीरघृताशनः ।। ऋतुमें उखाड़ कर धूपमें सुखा कर चूर्ण करें और उसे घीसे तर करके घृतपात्रमें भर कर उसका मुख तत्प्रयोगाअराजी? वृद्धो दारुकतामियात् ।। भग्नास्थिगद्गदशिशुः स्थूलोऽपास्यान्यरूपताम् ॥ बन्द करके अनाजके ढेरमें दबा दें और १५ दिन | पश्चात् निकाल कर काममें लावें । निरस्ताशेषदोषास्रनखभेदाद्युपद्रवः ।। अपस्मारग्रहोन्मादपापालक्ष्मीविवर्जितः ॥ इसे खा कर ऊपरसे दूध पीना और औषध दीप्ताग्निर्बलवान वाग्मी जीवेवर्षशतानि षट् । पच जाने पर घृतयुक्त दूधका आहार करना चाहिये । चूर्णितेरश्वगन्धायाः संयुतं त्रिशता पलैः ।। इस प्रयोगसे जरा जर्जरित वृद्ध भी तरुणके तत्तुल्यं दारुकं प्राश्य पयसा सर्पिषाऽथवा। समान हो जाता है तथा बालकोंकी कुरूपता दूर जीर्णे पूर्ववदश्नीयात् स जीवेच्छरदां शतम् ॥ हो कर उनका स्वर सुधर जाता है; टूटी हुई अस्थि वाजिवेगो गजप्राणः सुरूपो भास्करद्युतिः । जुड़ जाती है एवं रक्तदोष, नख भेदादि, अपस्मार, ग्रह, उन्माद और कान्ति हीनता आदिका नाश यो लियात्सर्पिषा चूर्ण वृद्धदारुकमूलजम् ॥ और अग्नि बल तथा वाणीकी वृद्धि हो कर १०० सप्ताहं यूषभक्ताशी स्यात्स किन्नरतुल्यवाक् । वर्षकी आयु प्राप्त होती है। ३० पल असगन्ध और ३० पल विधारा लिहन बा मधुसर्पिभ्या धात्रीस्वरसभावितम ॥ मूलके चूर्णको एकत्र मिला कर रखें। क्षीरेण वा पिबेन्मासं शतं जीवेदरुक् सुखी। इसे यथोचित मात्रानुसार दूध या घीके साथ सेवन और घी दूधका आहार करनेसे मनुष्य अत्यन्त वृद्धदारुकमूलानां रसं क्षीरेण यः पिबेत् ॥ बलशाली, एवं सुरूप और कान्तिमान हो कर १०० तत्कल्कसिद्धं सर्पिषा स जीवेनिरुजः शतम् । वर्ष तक जीवित रहता है। - For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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