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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
विडङ्गोदधिफेनैला शङ्खनाभिरसाञ्जनम् । इसे आंखमें लगानेसे बालकोंकी आंखोंकी एषा दृष्टिप्रदा वतिर्विदेहेन विनिर्मिता ॥ खाज नष्ट होती है । नित्योपयोगात्पटलं तिमिरं शुक्तिराजिके । (६८८३) व्योषाद्यञ्जनम् (२) शुष्काक्षिरोगौ तोदं च विवृद्धिं चार्ममेव च ॥
(यो. र. ; वै. र. । अग्निमांद्या. ; वृ. मा. । निहन्ति रोगानेतांश्च त्रिदोषानपि दुस्तरान् ।।
___ अजीर्णा. ; व. से. । विषूचिका.) निर्मलीके फल, लाल चन्दन, लाख, काली व्योषं करअस्य फलं हरिद्रां मिर्च, मुलैठी, नीलोत्पल, नीलाथोथा, बहेड़ेकी मूलं समावाप्य च मातुलुङ्गन्यः । गिरी, आमलेकी गिरी, मनसिल, जावत्री, मिश्री, छायाविशुष्का गुटिकाः कृतास्ता बायबिडंग, समुद्र फेन, इलायची, शंखनाभि और ___ हन्युर्विधूची नयनाञ्जनेन ॥ रसौत समान भाग ले कर यथा विधि वर्ति बनावें ।
सेठ, मिर्च, पीपल, कर वेकी गिरी, हल्दी इसे नित्यप्रति आंखमें लगानेसे पटल, तिमिर, और बिजौ रेकी जड; इनके समान भाग मिश्रित शुक्ति, राजिका, शुष्काक्षिपाक, तोद और अर्मादि | चूर्णको पानी में पीस कर गोलियां बना कर छायामें त्रिदोषज नेत्र रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
सुखा लें। (६८८२) व्योषाद्यञ्जनम् (१) इन्हें आंखमें लगानेसे विसूचिकाका नाश ( यो. र. । बालरो. ; व. से.)
होता है। व्योष सभृङ्गं च मनःशिलालं
___ (६८८४) व्योषाद्यावर्तिः करअबीजं च सुपिष्टमेतत् ।
(वृ. मा. ; व. से. । नेत्र रोगा. ) कण्ड्वर्दितानामथ वमनां तु. व्योषोत्पलाभयाकुष्ठताक्ष्यैर्वतिः कृता हरेत् ।
श्रेष्ठं शिशूनां नयने विदध्यात् ॥ अर्बुदं पटलं काचं तिमिरामाश्रुनिसुतिम् ॥ सेांठ, मिर्च, पीपल, भंगरा, मनसिल, हरताल सोंठ, मिर्च, पीपल, नीलोत्पल, हर, कूठ और करञ्जवेकी गिरी; इनका समान भाग चूर्ण ले और रसौत समान भाग ले कर यथा विधि वर्ति कर सबको एकत्र पीस कर सुरमेकी भांति बारीक | बनावें । कर लें।
इन्हें आंखमें लगानेसे नेत्रार्बुद, पटल, काच, १ सशृङ्गमिति पाठान्तरम् ।
तिमिर, अर्म और अश्रुस्रावका नाश होता है । इति वकाराधअनप्रकरणम्
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